पृष्ठ:कंकाल.pdf/१४७

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हा बाबा | बुड्ढे पुकारा --नये ।। गुव के समय आ गया । बुड्दै च एक बार नीचे से ऊपर तक जरै देखा। युवक नै अपर सन्देह का कोई कारण न मिला। उसने वहा–संब घोड़ी को नत्रावर चारे-पानी या प्रबन्ध कर दो। बुड्ढे के तीन साथी और उस युवक ने मल्लकर घोड़ो व मलना आरम् किया । बुद्दा एक छोटी-सी मत्तिया पर बैठकर तमाङ् भने लगा । गाला उस गारा खड़ी कर शससे हँस-हँसका बातें करने लगी। पिता और पुत्री भी अनन्न थे । दुई पुष्ट्वा --मपल्ला ! यह युवक वैसा है ? गाला न जाने क्या इस प्रश्न पर पहली बार लज्जित हुई । पिर संभल कर छन' कहा--देशों में सौ यह बड़ा राधा और परिश्रमी हैं ।। मैं भी ऐसा ही समझता है । प्राय, जुब हुम लोग बाहर नले जाते हैं, तब तुग अनी रहती है। यावा ! अर्ब बार न जाया कृ ।। तो चपा यहीं बैठा हूँ गाला ! मैं इतना बुरा नही हो गया ! नहीं वाना ! मुझे थवेसी होड़कर न जाया करो । पहले तू ज़ब छोटी थी, तब तो नहीं डरती थी। अब क्या हुआ ? और, व तो पहू 'नय' भी यहाँ रहा वारंगा 1 बेटी । यह फुझीन युवक जान पड़ता है। । बावा ! किन्तु यह घोड़ा का मलना नहीं जानता---६ सामने । पशुझी स इसे तनिक भी नह नहीं है। बाबा । तुम्हारे साय भी व निर्दयी है । एक दिन मैंने देखा कि सुप से चरते हुए एक बकरी के बच्चे को इन लोगों में रामूची ही मून डाला ! मैं रान बड़े डरने लगते हैं । तुम भी उन्हीं में मिल जाते हो । उप पगली ! अब बहु विलम्ब नही–मैं इन सबसे अलग हो जाऊँगा । भच्छा तो बता, इत्र 'ने' को रथ यू न ? —बदन गम्भीर हरि ॐ गाला की ओर देय रहा था। गाखा ने कहा—अच्छा तो है बाबा [ यैारा दुख वा मारा है ! एक चाँदनी रात थी । बरसात से घुला हुआ जंगी अपनी गंभीरता में हर रहा था । नाचे वैः तट पर बैठा हुआ नये निमिष दृष्टि से उच्च पय-विमोइन निम-गद को देख रहा था। उसके मन में कितनी बीती हुई स्मृतिय स्वयं मूल करता हु ती जा रही थी । हे अपने फटे हुए नोट को हटाने गा ! अब इसे एक बांसुरी मिच गई—-जैसे कोई छाई हुई विधि मिली। वह प्रसन्न होकर १३८ : प्राय माग