पृष्ठ:कंकाल.pdf/१५५

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नही थी; मैच इसीलिए शहरा। उन्होंने कहा--अभ्य गुर्नु त राम सोगों का माना । तुम्हारा नाम क्या हैं की ? हुमत जा, रारकर ! पहुए वह अपनी रंगी मित्ताने लगा। शत्रनम बिना किसी से कुछ पूछे, कर सम्बल पर बैठ गई । मदेव उना चा; पर कृष्ट बोला नी । शबनम गाने नाग-- परो मग मैरी मगार पर म विय। किारी ने बता दिया । उसे प्राप्त । पाने बाद में सरेशाम होने से युप्ता दिया ! इस भाग जैन धर्मम न भूल गया था । यह इस प र कई आर गाती रही । उसके संगीत में कहा ने घी, मरुगा यी । पीछे नै रहमा चम भूने हुए अंश गौ स्मरण दिलाने के लिए गुनगुना रहा था; पर शबनम पै हृदय कप कि अंश मुत्तिर्मन होकर जैसे उचकी इमर-शक्ति के मामने अ यात्रा मा । ¥मलाकर रमत ने सारंगी राय दी । विस्मय से मानम ने पिता को और देसा, कास्की भोली-कोली अगों ने पूछा-या कुछ भूल हो गई। अनुर हुमत उस बात को भी गया। मिरजा जैसे स्वप्न में चौके, उन्होंने इंघा-सचमुच सन्ध्या में ही कुञा हुआ फोह विहीन दीपक राामने पैदा है। मन मैं आया, उसे भर दें । कहारहमत, तुम्हारी जीविका वा अमलम्ब तो या दुर्बल है। सरकार; पेट नहीं भरता, दो बीघा जमीन हो या होता है। पिरजा में गौर से कहा तो तुम लोगों को कोई सुयी ग्रना चाहे, सों रह सकते हो ? | हिगत के लिए भै गर फाड़कर मिस्त्री नै कानन्द वसा दिया । वह भविष्य की मुख्नमम मल्पनाओं से पागल को उठा—वयों नही सकार! आप गुनियो पो परख रखते हैं। सोमव ने धीरे से कहा-धेश्या है राहार। मिरजा ने हारिह हैं। सोमदेव ने गिरकै होकर सिर शुक्म लिया । . कई अझ बँत गर्थे । शबनम मिरजा के महा में रहने लगी थी। मुन्दरी ! सुन्दरी ! ओ बैदरी ! यहाँ तो आ ! १५६ शव नामय