पृष्ठ:कंकाल.pdf/१५७

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नहीं थी; मैदल इसीलिए पहुस। उन्होने कहा—अच्छा मुर्नु हो तुम लोगों को गाना । तुम्हारी नाम या है जी ? | हुमत खां, सरार !-—कर वह अपनी सारंगी मिलने लगा । शबनम बिना फिर से कुछ पूछे, आकर कम्बल पर बैठ गई । सोमदेय झुंझला Eठी; पर कुछ बोला नहीं ! शवनम गाने लगी पसे मर्ग मैरी मजार पर जो दिया किरा ने जसा बिया। उतै आह ! दामने बाद में सरेशाम ही से जुभा दिया । इसके बार्गे जैरी पाजनैम को भुल गया था। वह इस पद्म को कई बार गाती रही । नासवे गीत में कला न था, करूणा थी । पछि नै रहुमने इसके भूते हुए अंश को स्मरण दिलाने के लिए गुनगुना रहा था; पर पाबनम के हृदय मा रिक्त अंश मूतमान होकर जैसे उसकी स्मरण-शक्ति के सामने अद्ध जाता मा । अालीकर रहुमत गे सारंगी रख दी । विस्मय भै शबनम ने पिता की ओर दैजा, उसकी भोली-भेल्ली आंखों में पूछा वसा कुछ भूख हो गई । एतुर रङ्गत उस बात को पो गया । मिरजा जैसे स्वप्न से चौके, उन्होने देस–सषमुच सन्ध्या से ही बुद्ध हुआ ह विहीन दीपक सामने पढ़ा है । मन में आया, उसे भर दें। छहारह्मरा, तुम्हारी हीयिका का अवलम्ब तो बड़ा दुर्बल है । सरकार पेट नहीं भरता, दो बीघा जमीन से क्या होता हैं । गिरगा ने कौतुगर से कहा तो तुम लोगों को कोई मापी रखना चाई, शो रद् सक्छे हो ? हमरा के लिए जैसे छुपर फाड़कर किसी में आगद बरगा पिया। भविष्य की सुखमय झल्पनाओं से पागल ही उमज नहीं सरकार $पि गुनियों की परख रखे हैं। सोमदेव ने धारे से कहा-वैश्या है सुरकार। मिरजा ने कहा दरिद्र है। सोमदेव ने विरत होकर सिर घूया लिया । . वाई इरस यति गमे । शयनम मिरज के महल में रहने लगी थी। सुन्दरी । सुन्दरी | वो वैदरी ! यह तो आ ] १४६: प्रशद याड्मय