पृष्ठ:कंकाल.pdf/१६०

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गुन्दरी ! उठा में मेरे सामने से पिंजरा, नहीं तो तेरी भी पोपडी फूटेगी गौर यह | तो इंटेगा ही ! भुन्दरी ने वैश्य 'रंग देखा, वह पिंजरा लेकर नती। मन में सोचती जाती थी। आज यह अभी । गन-बहुनाव न होपर यह पापड़ कैसा ! । बनम तिरस्कार न सह् सको, वह ममाहत होकर श्वेत प्रस्तर के स्तम्भ से टिकर सिराकने लगी। मिरजा ने अपने मन को धिक्कारा । रौने वाली गतका में उसे अकारण अरुण हुयस को इपित कर दिया। उन्होंने मशहा हो। भनाने की कैप्टा 'ही; पर मानिनौ ना दुलार हिंगकिंग सैने लगा। तोमध उपचारों में मल्लका को जय बहुत सगय यीश पर स्वस्थ किया, तब अझ सूर्य पद-चिह्न पर हँसी की दौड़ धीमी थी, सात बदलने के लिए मिरजा ने कहामलबा, बाई अनिा सितार सुगा, देखें अब तुम कैसी बनाती हो ? नहीं, तुम हँसी करोगे और मैं फिर दुःखी होगी । | तो मैं रामल गया, जैसे तुम्हारा बुलबुल एक ही लाथ अनिता है—मैसे | ही तुम अभी तक यही गैरवी फी एक तान जानती होगी–कहते हुए गिरना नाहर भले गमे । भने सोमदेव मिला, मिरजा ने कहा,- रागदेव ! मगाच धन वा बादर वरना नहीं जानते । ठीक हैं सीमान्, बनी भी तो शब का आदर करना नही जानते, या* | सनकै अादरी के प्रकार भिन्न हैं । जो सुख-सम्मान अपने शवनग को दे रखा है, वहीं यदि किसी कुलद को मिलता ! | मह बेश्या तो नही है.., फिर भी सोमदेव, सत्र में एप को देखो--धन चिन्तन के मुख सरल है, इनकी भोली-भाली ऑखे रो-रोकर कहती हैं, मुद पीट-पीटकर मनलता सिखाई गई है। मेरा विश्वास है कि उन्हें असर दिया जाय तो वे किंतनी ही कुलधुओं से किसी बात में कम न होती ! मेरा ऐसा अनुभव नही, मरी नरके देधिगे । अच्छा तो तुमको पुरोहित करनी होगी। निकाह कराओगे न ? अपनी मर दड़ोसिये, में प्रस्तुत हैं ।—कहकर सोनदेय ने हंस दिया । मिरजा मलका के प्रकोष्ठ की ओर चले। सन आभूपण और मूल्यवान वस्तु होमिने एक बार मेला वैठी है । रहुमत ने सहसा आगर देथा, उसकी गांरवे नमः उठी। उसने कहा-पैटो यह सब क्या ? है राहेज देना होगा । काह : १५ हैं।