पृष्ठ:कंकाल.pdf/१६४

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" तो हम लोगो को भी तैयार हुना चाहिए ? फहर मिरजा में अपनी शिरोही उठा ली। रमत ने हा–अप भी किंकी बात में आते हैं, जाइए गि जिए । नत्र जोग उस समय तो हँसते हुए उठे पर अपनी मोरी में आते रागग। गयौः हाथ-पैर बोहर में लदे हुए थे। मैं भी माँ ऐः माथ कोठरी में जाकर सो रही । रात को अचानक कोलाहल सुनबार मेरी अखि सुज्ञ गई। मैं पहले सपना समसफर फिर भी नन्द करने लगौ; पर झुठलाने से कठोर भापति फोही कृठी हो सकती हैं। सचमुच इक्रा पा था, गाँव मे रात्र लोग भय ने अपने-अपने प्रो में घुसे थे । मेरा हुदरी धड़कने लगा। मी भी उठकर बैठी है। यह भयानका आक्रमण मेरै नाना ही घर पर हुआ था। रहूमता, मिरा और मोमदेव ने कुE हाल तक उन लोगों को रोका, एक भीम काण्ड उपस्थित हुशा । हग गाबेटियां एक-दूसरे नै गले से लिपटी हुई थर-थर काँप रही थी । रोने का भी साहु र होता था 1 एक दग के लिए बाहर का कोलाहल | अब उस फोटरी के पिनाह त जारी संगै, जिसे हम लोग थे । भयानक शब्द ने मिनाले हटकर गरे । गेरी माँ ने हुम किया, वह इन लोगों ने भोली तुम लोग क्या चाहते ? | नवावो का माल दो बोध ! कक्षाओ कहाँ है ? एक ने कहा है मरी माँ बोली -हैन लोगो की नयाथी उसी दिन गई, जब मुगलो का राज्य गया ! अब क्या है, किसी तरह दिन काट रहे हैं। | यह पानी भला अजाएगी--केकर धो नर-पिशाचो में उस घसीटा । यह मिपति को सताई मेरी माँ मूटित हो गई; पर डाकुओं में से एक में कहा, " मल कर रही है और उसी अवस्था में उसे पीटने लगे । गर बह फिर में बोली । मैं अवाक् पौने में कांप रहीं थीं। मैं भी मुष्टित हो रही थी कि मैर कानी में भुनाई पहा-इसे न ओ, मैं इस देय होगा। मैं अभेत थी । | इखी झोपी के कोने में मेरी आँखे वृत्त । मैं भय से भरी हो ही यी । गुझे प्यास लगी थी 1 ओठ चाटने लगी । एक सौलह बरस के शुतक ने मुझे थोड़ा दूध पिलाया और कहा-घबराओ न, तुम्हें कोई डर नहीं है ।—मुके आरासन मिला। मैं जुई हैठी। मैंने देखा, उस युवक की अषिो में गरे लिए र हैं ! म दोनों के मन में प्रेम की पर चलने लगा और उस तोल बरसे के यंग गूजर की सहानुभूति उग्रमें उत्तेजना उत्पन्न कर रही थी । पाई दिनों तक ये में पिता और माता का ध्यान करके रोती, ती बदन मेरे अमू पोंछा और मुझे समझाता । अन यौरे-यौरे में उसने राय जंगल के अंचलों में घूमने लगीं। कंथात १५३