पृष्ठ:कंकाल.pdf/१६७

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उसे देखते ही उड़ खड़ी हुई, घोलीबाबा ! सुमने कहा था, आज मूत्री बाजार लिवा चलने नो, अब वो रात हुआ पास है ? | फैल चतुंगा चैटो ? –चाहते हुए बदन ने अपने मुंह पर ही ले लाने को नेप्टा की, क्योकि यह उत्तर गुनने के लिए गासी वैः गान का रंग गहुरा हो चला था । वहु वालिका के सुदृण नुककर बोलो तुम तो बहाना मरते हो । नहीं, नहीं, फल तुझे लिया से चतुंगा । तुझे क्या लेना है, सो तो बता ! मुझे दो पिजई नाहिए, कुछ सूत और रंगोन कागज।। अच्छी कल से आना । | वैटी और भाप गा पह मान निपट गया । अब योन। अपनी जौपड़ी में आगे और रूखा-पृष्ठा खाने-पीने में लग गये । १५६ : प्रप्ता बाम