पृष्ठ:कंकाल.pdf/१६८

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  • की बस्ती से कुछ हटकर एक ऊँचे टौते पर फूस फी वड़ा-सा छप्पर तीच कई घटाइम पड़ी है। एक पौकी पर मंगलदेश हा इ.

प र के नीचे आती ---शोलकलि की ते प से अपनी पीठ में श प रहा है । आठ-दस मैले कुनै एकै भी उसे टीले के नीचे-ऊपर हैं। टी वार कर रहा है, योई अपनी पुस्तकों वो बेठन में बौध रहा है। उधर नये पोधों में पानी में रहा है। मंगलदेव ने यह भी पाट्यानी खोल । कुछ थोड़े से जाट-यूज के सहके यहाँ पङ्कने आने हैं। मगल नै बहन ने उन्हें स्नान करना सिया; परन्तु कपड़ों के अभरि ने उनकी घोड़ी है। कभी-कभी उनके क्रोधपूर्ण झगड़े में मंगल का मन ऊत्र जाता है। ये अत्यन्त कठोर और तीव्र स्वभाव ये हैं। " साह से वृन्दावन की पाठशाला चलती थी, वह यहाँ रही है। बड़े एपिड देहातों में घूमकर उसने इतने लडनैः एकत्र किये हैं। मंगल आज चिन्ता में निग्न है । वह सोच रहा था-क्या मेरी नियति इतनी कठोर है कि वे कभी चैन न लेने देगी। एके निशन परोपकारी हुइप नैनर में प्रवेश दिया और मुन्ना भी भलाई करने । पाठशाला था गुन्दर मैंने एक भोली-भाको निको के इद्धार करने की सभी किया, मेरे जीवन की करदार् पगइण्डियों में घूमता-फिरता मुई काहा में पिा ! वक, पैश्चात्ताप और विवादा की कौ म 1 उसे पता की अन्नई करने के लिए जद-उद की पैर बडाग, शके वानर पीई दृटा और उसे भी ठोकर लग | यह कि अति प्रेरणा है ? मेरे दुभांर की ? मेरे मन में घर्म का दश ६ । वही चर प्रतिने मिला। कार्यसमाज में प्रति जो मेरी प्रदिहुन सम्मति से उता न., राई यायो । हो, मानना पड़ेगा, धर्म-दम्य उपासुना के नियम उसके चाहे जैसे होंगरन्तु सामाजिक परिवर्तन उसके माननीय हैं। यदि में से ही समझता । अह ! कितनी भूल हुई । मेरो मानसिज धुर्वसदर ने मुझे कचरेर चिनाया। कतात; १५७ जीवन छाक यही सरी कप