पृष्ठ:कंकाल.pdf/१७७

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में खोजती थी आकाश में ! ईसा की जननी से पुछतो था । इतना खानने की क्या आवश्यकता ? कही तो नहीं, बहू देयो कितनी चिनगारी निकल रही है। सबै एक-एवः प्राणी हैं, चमकना, फिर लोप ही जाना ! विसी के बुझनै में रोना हैं और किसी के जल उठने मे हँसी । हा-हा-हा-हा !... तब तो बालक और 'मी इरा । यह अस्त था, उसे भी शंका होने लगी कि यह पगली तो नहीं है । वह बुद्धि-सा इधर-उधर घेख रहा था। दौड़ कर भाग जाने का साहस गी न पा । अभी राक इराकी गाड़ी पगली लिये थी । दूर से एक स्त्री और पुरुष, यह भटमा मुल से दंपत चले आ रहे थे । वृन्हान बन्नक को विपत्ति में पड़ा देखभर सहायता करने की इच्छा फी । पास जाकर पुरुप नै कहाँ क्यों जी, सुम पागल तो नहीं हो ! क्यों इस लड़के को तंग कर रही हो ? संग बर रही है। पूजा कर रही है पूजा | राम, कृष्ण, पु, ईसा की सरसत्ता की पूजा कर रही हैं। इन्हें रुला देने से इनकी एक सरस हो जाता है। फिर हूँमा दूंगी । और, तुम तो कभी भी जो लिकर न स फोगे और न सुकोगे ! । बालक को कुछ साहस हो चला था । बल्ल अपना हायसः देयर बलि। उठामेरी गाड़ी छीन ली है | पगली न पुनधारते हुए कहा—चिन लोगे ? देखो पश्चिम में सुष्मा कैसा अपना रंगन चित्र फेलासे बैंठो ६ | -पगली के राम ही और उन तीनों ने भी दया। पुरुष ने कहा-- मुरी बातें करो, जरी बाप्त की जाने दो 1 पगलो हस पड़ी । वह बझी नुमसे बात ! बातों का कहाँ अवकाश ! चालबाजियों हैं कई अवसर !ह, ईबो उधर काले पत्थरों व एक पहाड़ी, उसकै याद एक लहराती हुई दौल, फिर भारंगी रंग की एषः जलती हुई पहाडी जैसे उसकी ज्वाला टंछी नहीं होती ! फिर एक सुनहा मैदान !-- वहीं चलोगे ? उपर देखने में सब विवाद वन्च हो गया, वालक भी चुप था । उस स्त्र और गुस्य नैं भी निसर्ग-स्मरणीय दृश्य देखा । पगली कित परनैयाला हाय फैलाये अभी शक वैसे ही स्त्री थी । पुरुप ने देया, उसका सुन्दर शरीर बुम हो गया था और बड़ी-बड़ी आंब्रे वाया में व्याप्त थी। जाने बहू कब से अनाहार कई कष्ट उठा रही थी। साथमाझी स्त्री से पुराय ने कहा-–किशोरी | इसे कुछ खिला ! किशोरी उस यानवः यो देख रही थी, अब श्रीचन्द्र झा इयान मी उनकी भोर मया । वह बाल उग गज की उन्मत्त क्रीडा से रा पाने की या में विश्वासपूर्व नेत्रों से, इन्ही दोनों की ओर देख रहा था | श्रीचन्द ने उसे गोद में उठात छुए कहा- चलो तुम्हें गाडी यिला हूँ ! १६६ : साव ग्रामप