पृष्ठ:कंकाल.pdf/१७८

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किशोरी में पलौ से महा--न्हें भूख वगी है, कुछ पायो ? पगनी और सिके दोनों को उनके प्रस्तावों में हुमत पे; पर दो नी । ए में धी है। मह जो का पडा र गना, हौर वोडा---गुशी अप व से पहाँ पर भी है ? पल; हुने पर पहुँचा हैं ? --हू ओपन्द्र की गोष्ट से अने से होगा, ची को पाक्षिक पुत्र हैं, क्यों है गोहुन । ३ अभी से आश मारे परन्तु मोहन वहाँ से उतरना नहीं चाहता था । मैं तुझको कय हे शोज रही है, तू बहा दुष्ट हैं है ।-ती हुई भाभी नै आकर उसे अपनी गोद में ले लिया । सहसा पगली हँसतो हुई माग गती । वह अझ ही यो-यह देखो, प्रकाश भाग जाता है...अन्धकार...! -कहकर पाती बेग से दौड़ने नागों थी । केन, पहमद और गद्धों का स्थान नहीं । अभी घोड़ी भी दूर यह न जा सकी भी कि उसे टोकर चोट लाने से यह मूक्ति | पह इत उसके पास पहुंचा। श्रीचन्द्र में पाया में कहा-इसको लेदा होनी -सी में गई ।। , वह गिर पड़ी। गहरी माहिए, वेदा दुखिया है ! पदानी अपने धनी अलमान की प्रत्येक आशा पूरी परने के लिए प्रस्तव में । उन्होने कहा---वाको श पर सो पास ही है, वह उसे उठी में चलता है। पानी ने मोहन सौर थीह के पवार को देखा था, इले बने आशा पी । उसने क मोइन ! -मोशन को लाकर यह पानी की सहायता से प्रगती को अपने हा , हाँ, वैनारी को इ चोट तो है, ज्वार हो पानी के घर में में ची। मोहन बोने ई ? शानी होने में चोगे ? । ने गर । चना--प होते हुए मोहन ने कहा। चन्द्र ने कहा--ओहो, भुम बड़े मोन के मा मे पयत से दूर रहने की वही हुश ६ः । शोचन्ह मे पड़ा। को इE रुपये दिये कि पगलो है आन् र ः चित प्रबन्ध निया जाय; भरि बोले-चो, * भोग को गाडी दिलाने के लिए बार लिबाडा जाऊँ ? चनों में फा--हाँ हाँ, जापा से बड़ा है। में फिर अभी अति है, आपके पदोस में ही तो हरा है ।- किशोरी और मोहन याजार को और चने । | पर तिखो हुई घटना को महीनो गीत चुके है। अभी तक पिशोरी अयोध्या में हो रहे ! गेश्वलाप के मन्दिर के पास से देत या । सन् र शौच, को तीन गरी सामने नह रही थी । स्वर्गद्वार के घाट पर इनान १ ६ धानन्द्र, किशोरी नैठे थे । पात हैं एक देशी चन्द्र और निमिश 47 भा का रहा या कंकाल : १६४