पृष्ठ:कंकाल.pdf/१८२

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दर गन्द का पोहन में लनेन बन गया था और चाची भी उमफौ राई बनाने 7 काम करती दी । वह हार से अयोध्या नली बाई ची, गावः व वा भन न लगा । | याची का ज; झप पाठक भूने न होंगे, जर यह अहार में तारों के माय ती थी; रितु तव में अर्थ अन्तर मा । गानय मनोभूचि प्राथ' अपने लिए। एक केन्द्र शर्मा दिमा करती हैं, जिसके बारे। और वह आशा और उत्साह से नापती रही हैं । नानी हरा चै उस पुत्र को .. जिमे यह अस्पताल में छोडपत्रे घनी आई भी -अपना न गया मैमझने मर्ग की । गोहने यो नै के लिए उगने अधिकारियों में मांग लिया गा। | पगली और चाची गिरी पाट पर बैठ गी; वह एरः अन्धा भिखारी ठश रेका हुअा, उन लोगों के मर्म अयर । उगने कहा--गौ दो बाधा ! इत जन्म में तिनै अपर किऐ हैं-- अगवन् ! अभी मौत भी नही अती । राधी नक वैठौं । एक बार उगे प्यान र ईन नगी । रामा पानी में का. -रे, मुर्म गरी में यहाँ भी पच । जी में जूमता है बेटी ! अगदा प्रायश्चित्त नारने में ए, दूसरा शह बनाने के लिए ! इतनी है तो आप है-~-fधारो ने उड़ा ।। पगन्दी चत्रित हो उठी। अभी उशके मस्तिष्पः की दुर्गा गई भ थी । उन समीप पर इस झनझोर कर पृ - गोविन्दी न नी नी हुई बैटी को नुम भूल गये ! पनि , मैं यहीं हैं; गुम बताओ मेरी माँ को ? अरे घृणित नीच अन्ध्र ! मेरी भाता है मुझे छुड़ानेपानै पारे ! ३ कितना निठुर है ! देगा भार बेटी ! 7झा में भगवान् की शक्ति है, उनफी अनुकम्पा है। मैने अपराध किया था, उसे का हो। फल भोग रहा है ! अदि तु रान शही गाविधी चाहने की पाली हुई नहीं है, तो हैं प्रसन्न हो जा—अपने अभिशाप वाला में मुन्न कला हुआ देवर भराप्त हो जा ! बेटी, हरदार कि तो वैरी मां का कि , पैर में ये दिन से नहीं जानता कि वह अब कहाँ है ! नन्दो कहाँ है ?यह बताने में अब आधा गिदेव असमर्थ है बेटी ! चानी गे चुर सहरार चल अन्धे कत्र य पककर कहा--राव ! रमदे में एक बार अपनी वों से देखने को भरपूर चेष्टा को, फिर विपन होकर अगू यह 5 मेलानो बृ-सा स्वर मुगाई पड़ता है। न्ध गुम्ही हो ? बोपी ! हार से तुम यहाँ अ गई हो ? है न ! आज शुमने मैरा गराध गए विया,---नन्दो ! सही तुम्हारी होनी है ! रामदेव की झूठी शॉप से 5 अg हे थे।

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