पृष्ठ:कंकाल.pdf/१८३

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'राम एक तोपरा-तिघ सारो। नाम फोदि उत कुर्मात सुधारी ।' | तापम-तिम तारी–गौतम की पत्नी अहल्या को अपनी सौ फी समय भगवान् में तार दिया । वह पीनन के प्रमाद से, इन्द्र के दुराचार है, न गई। अराग पति रो-इस नौक के देवता से किया। वह पाभरी इस रोग के सबश्रेष्ठ रल सतीज रो बचत हुई । उसके पति ने शाप दिया, वह पत्थर हो गई । यात्मोकिं ने इस प्रसृग पर लिखा है--तिभशा निराहार तप्यन्तो भस्मशामिनो। ऐसी कठिन तपस्या करते हुए, पश्चात्ताप अनुभई करते हुए गहू पत्थर नही ती और गधा घी 1 पतितपालन ने उसे माप-विमुक्त दिया । प्रेत्ये पापो के दई की सीमा होती है । ब काल में अहल्या-मो स्त्रियों के सैने को सम्भाबना है, क्योकि मुमति तो बनी है, वह जसे चाहे किसी को अल्मा बना सकती हैं। उसके लिए उपाय है-'भगवान् का नाम-मरण । अप सोम हामस्मरण की अभिप्रार्म मह म भर ले कि राम-राम चिल्लाने से नाम-मरण' । गमा 'नामै तिरूपन नम झा से । सो प्रफटत बिपि मोल रतन में ।' अस 'राम' शब्द्धमानी छस अबिल ब्रह्माण्ड में रम र वाम गायन की रात को सत्र' कार करते हुए रार्थस्य मर्पण गारगेथा। भक्ति में साथ उरा का रण रना हो यथार्थ में मान-मरण है ! | वैरानी ने नया समाप्त की सी बंटी । सब लोग जान लगे । श्रीचन्द्र भी चलने के लिए उरमूक था; परन्तु किशोरी को हुदय गप ा या अपनी दशा पर, और पुलकित हो रहा था भगवान की महिमा पर । ईराने विश्वासपूर्ण नेगी से देया कि सरयू प्रभात के तीव्र पान्दोक में नहाती हुई भह रही है। इस सास हो घना या । आज उसे पाप और उससे मुक्ति का नीन हुस्प प्रतिभातित है। रह्म था । पहली ही वार उसे अपना अपराय स्वीकार निन्मा, और यह उसके लिए अच्छा अबसर था कि उसी क्षघ उसे उद्धार को भी भागा पी। वह व्यस्त ही अळी । | गगनी अब स्माश हो गइली थी । विकार तो दूर हो गये थे, किन्तु दुर्बलता बनी थी । बहू हिन्दूधर्म को और अपरिचित कुलुइञ्च से देखने लगी थी, उसे यह गगोरंजक खाई पता था । अझ भी चाची ने गाय धीच से पट । दूर गैठी हुई, सरगु-तट का प्रभान और उसमें हिन्दूधर्म के आलोक पौ राकुले देख रही थी। १६६ ; असाव पथ