पृष्ठ:कंकाल.pdf/१८६

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अन मोहन के लिए उसके मन में उतनी व्यों न धी । मोहन ) श्रीनन्द्र को बाबूजी कने लगा था । यह मुख में पहले लगा। विशोरी परिवार के पास वैठी हुई अपनी अनोव-चित्ता में निम्न थी । नन्दों के साथ पगलो मान कर लौट आई गी दादर उतारते हुए नन्दो में पगली से कहा----बैट्रो ! उसने कहा—माँ ! हुमका गब किस नाम ६ फुकारते थे, यह तो मैंने आज तक न पूछा । ब्रतला बैटी वह प्यारा नाम ! म, मु पौलाइन 'पपड़ी' नाम से बुलाती थी । नईदी गई मुरी घण्ट्री ही तेरी यही है गैटी ! किशोरी मुन रही थी। उसने पास आकर एक बार अछि गदा और देर और पूछा-या कहा ! यष्टी ? ही हनी--अझी चुन्दाबविली घटी । किशोरी आम हो गई। यह भभक उ.-.-नकर जा इगन ! गैर विजय को पी डालने वाली पु ल ।। | बन्दो तो हिले एक बार त्रिनोसे की डांटे पर इतवा रही; पर घम् पय हुनेयाली ! उस व ह भालकर बातें यारी बहु ! मैं फिर से अपने नौ । भेरे सामने किसी साहस हैं, जो मेरी बेटी-~म पश्टीको क्या दिउलाये 1 डि निकाल ! तुम दोनो अभी निकल जा –अभी जाओ, नही हो भो म धपत्रः देकर निन्दा (~-दृरती हुई किशोरी ने कहा। | तग इतना है। तो-गौरी ने अपना मुहाग ले ! हुग जाग गार्नर है, मेरे रुपये अमी दिला दो, बस अब एक दि भी मुंह से में निकालन-~-समझा ! भन्यो नै होरपन में कहा है । । विगोरो अघि में उौ और अलमारी जोर मोड का है उसके सामने फैलती हुई वोलो–लो गहुंजो अपना हागा, भो ! | भेन्द्रों में प्रप्टो र कहा–अत्तो बेटो ! अपना सामान ले लो । दोनों ने तुरन्छ गढ़ते दबाकर बाहर की होड़ तौ । दिदारी में एक बार भी उन्हें ठहरने के लिए म कहा । ॐ मय यौवह और पोइन गादी पर तिर ईदा जान्न गळे शें । विरों का हृदय इf नवागन्तुक पित अन्तान के विद्रोह तो कर है। हा पा, पद्द अपना रात्री घन गंवार न दत्तय पुत्र मन मुमदान में मिर्च

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