पृष्ठ:कंकाल.pdf/१९०

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अंगदेव की पाठशाला में अब दो विभार हैं--एक लडको का, दुसरा ईनियो का । गाला अडकियों की गिरा का प्रबन्ध करती । वह अन एक प्रभाव शनि गीर गती दिखाई पड़तो, जिनके रो ओर पबित्र सौर नई ॐ मत पिर उतर ! बहुत-से सौ आश्चर्य से दफ् । पाडगा त्रिनमें एक अदा; तोन-चार पढे, एक पानी का बरतन र कुछ पुस्त थी । में बड़े पाठशाला में आरो, थे इस जोडो । हा एक पुस्तक अनोयोग से यह रही घौ । कुष्ट पर्न तदते हुए चराने सनष्ट पर के पास हो पाता हैं ही * पुस्तके धर दी । वह सामने वो इक से ओर देणे वगै । फिर भी कुछ पड़ी थी, सुमन ने ने आपा । बने F६ नागस में नहायक होने के बदले, जयं आर हो काया । ३ किर पुस्तक पढने ते ए कहा---पाकम ५॥ रानी को उदारता पर हैकर प्रश्न प्रकट की...' राजा और रानी, मन -'नो ने उन पर पा दिग्धा मा जम्न है कि जा और पुष्प बनाने का, संसार का हनशील पाझौदार होने का, सन्देश की ए हाद दिया और राजा ने हो । केवल महा या प्रदर्शन, मन पर अनुचित प्रभान का बोझ ! चने धाकर पुस्तक पटाकर एक निःपास निमा । उसे बदन का स्मरण हु, या'-ग कर एक बार विक उठी । वह अपनी है। भरना प्रारंभ के ४ । वो सो मन-म धा मंगल कुम का करती हुई जतने घगी ।। हुआ सामने दिखाई पडा । मिट्टी ८ वी ६ दिन जगा दिये, मैं तो अब सोने टा हो यो । स्या है, मग । एक शो पर या कामानि थिोर था। गुरुदर में दराने शहायता के frए बुजश थी । म्ही आम हत्यारों की भी गरी गाना ! वह इत्या उसमें नहीं की मी, तुतः एक इरे पुष्प * की; पर, वह स्त्री उसे बता करता है ? चाना चाहती है। श्यों ? कंकाल : १७३