पृष्ठ:कंकाल.pdf/१९१

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थीं। नियत की इम ब्रास्त्र विडम्बना नै उरी सप्तर बना दिया। गिम घण्ट्री के कारण विजय अपने गृधमत्र मंचार को खो बैठा और विशौरी ने अपने 'त्र विजय कों; इस घण्टी का भाई आज इस सर्वस्व का मासिष है, उराfधनाने है । दुईव का यह गैसा रहा है ! मह टपटाने लगी, मोगुने गी; परन्तु अब वर ही या मकती थी। धर्म के वियाग में दत्तक पुर्य उगुफा अधिफारी पा गौर विनय निमम के विधान से निर्वासित-मृतक-नुल्य ! १७६ : प्रेशर में