पृष्ठ:कंकाल.pdf/१९२

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मगलन की पाठशाला में अध दो विशाग हैं-एक लडको का, दूसरा ईकियो । गाला लडकियों की शिया का प्रबन्ध करती। वह अब एक प्रभाशाजा इम्भीर गुगलो दिखलाई पडती, जिसके पाटो जोर पवित्रता और गह्मवर्ग मा मण्डन पिरा रहता । बहुत-ते सोण को पाठशाला में आते, ये इसे ठीक शुश्चर्य में देधते । माता जिसमें एक चटाई; तीन-चार कपड़े, एक पानी का बरतने और के ज्ञटे हुए है पारा ही भाला एक गुलक मनोयोग से पद रही थी। कुछ पन्ने इलटते हुए इराने सन्तुष्ट होकर पुस्तक और दो ! ह सामने को राष्ट्रक की ओर देखने तरी । फिर से कुछ ना की भी झोप यी, गगार में 5 अगा। ज़राने परतते हुए कहा--पाङ्गम भर अभFध है पुस्तकें पी । यह मनोविकारा में सहायक होने के अदने, स्वयं भार हो जायगा । यह फिर पुस्तक पद्दते सगी-'रानो ने इन पर कृपा दिखाते हुए को दिया और राजा ने भी रारी को इयता पर होगा प्रसन्नता प्रकट वो...' राजा और रानी, शमै स्त्री और नही। मेषत भत्ता का प्रदर्शन, गन पर अनुचित प्रभाव का योश ! उसने पेनाने का, संसार का सहनशील माझीदार होने का, सन्देश काही तर एरवः पदकफर एक निःस्वास था । उसे नदन का स्मरण हुश, 'बाबा'-मह कर एक बार धिक उष्टी । वह अपनी ही भर्सना प्रारी कर चुकी थी । ही मंगलदैव मुस्कराता हुआ सामने दिखाई यहा । गिट्टी ने दीप । हे राम कुछ पन्ने दस पुस्तके थी। का रानी की ब्यारत ने गृप बनाने क ने उन पर कृपा र प्रसन्नता मार हो । हुए छह दिया है फिर भक-भक करती तिा हुआ सामने भरना शरण भने कई दिन लगा दिये, मैं तो अब सोने जा रही थी। क्या ने उसी समठा जिए इलामा था । , आयगे को एक औ पर स्क का भमानक अभियोग पा गुदेने तुम्हारा आम दारों को भी भापता या है? नहीं गाता ! वह हत्या उसने नही की पी, रस्तुतः एक दूसरे पुत्र नै को; पर, गैह की उसे बनाना चाहते है। पों ? कंकाल : १७६