पृष्ठ:कंकाल.pdf/१९८

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यो-चार मनुष्य और इकट्ठे हो गये । बाथम ने कहा--माँ बी, मह मेरी विवाहिता स्त्री हैं; यह ईसाई है, आप नही जानतौ ।। नन्दो तो पबरा गई। और लोगों में भी कान सगवगाये; प राहा फिर मंगल बाथम के सामने लेट गया। उसने घण्टी से पूछा--क्या तुम ईसाई-धर्म ग्रहण कर चुकी हो ? मैं धर्म-कर्म कुछ नही जानतो । मेरा कोई आश्रय न था, तो इन्होने मुझे मई दिन खाने को दिया ग्रा। ठीक है; पर तुमने इन ाथ क्या किया था ? नहो, यह मुझे दो-एनः दिग गिरजाघर में ले गये थे, क्याहु-गाह में नहीं जानती ।। | मिस्टर यामम, यह क्या कहती हैं ? क्या आप लोगों का ध्याहु गर्भ में नियमानुसार हो चुका है—जाप प्रमाण दे सकते हैं? नहीं, गिरा दिन होने वाला था, उसी दिन तो यज्ञे भागी । हाँ, यह बपतिस्मा अजय ने चुकी है। क्यों, तुम ईराई हो चुकी हो ? * हीं जानती ।। अच्छा मिस्टर वाधम | अत्रे आप एक भद्र पुरुर होने के कारण इस तरह एक स्त्री को अपमानित न कर सकोगे। इसके लिए आप पश्चात्ताप तो मरेंगे ही, पाहे वह प्रकट न हो । छोड़िए, राह छोडिए, जो देवी ! मगच के इस वाहने पर भीड़ हुट गई। वार्थम मी कृता । अभी यह अपनी पुन में यादी दुर गया था कि चर्च का चुदा चपरानी मिला । श्राधम चौक पड़ा। चपरासी ने कहा---हे साहब की नली है; चर्च को सँभालने के लिए आपको बुलाया है। यम किर्तव्य-निमूना नर्स के तांगे पर आ बैठा। गर नन्दो वा सो पैर ही आगे न पड़ता था । अह एक बार अंटी को देखती, फिर सडक को । घण्टी के पैर उन गृदयी में गड़े जा रहे थे । दुःख में दोनों के अनु छः आने में । दूर वहा मंगल भी महु सब दैख रहा था, यह फिर पास था, बोला-आप लोग अब यहां क्यों नाडी हैं ? नन्दी रो पडो, बोली—यबूजी, बहुत दिन पर मेरी ये मिनी भी, तो बैघरम होकर ! हाय, अब मैं मयः कसे ? मंगल के मस्तिष्क में सारी बातें दौड़ गई, यह तुरन्त बनि उठा-आप माग गोस्वामी जी के आम में चलिए, वहाँ सब प्रबन्ध हो जायगर, सहप पर खदी कंकाल : १७६