पृष्ठ:कंकाल.pdf/२०३

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इस अर्थ में इन शब्दों का व्यवहार करता है। धर्म और नोति में शिथि हिन्दुओं का समाज-शासन कठोर हो चला है ! क्योकि, दुर्वल स्त्रियों पर ही शक्ति का उपयोग करने को उसके पास मा बच रही हैऔर यह अत्याचार प्रत्येक गत और देश के मनुष्यों ने दिया है। स्त्रियों की निसर्ग-कोमल प्रकृति और उनकी रचना इस बारण हैं। भारत-संघ वि-बाणी को दोहराता है। 'अत्र नार्षरतु पुज्यन्ते रमन्ते रात्र देयता | का है स्त्रियों को सम्मान करो ! जुन्दावन मैं एक भयानक हलाल मच गईं। सन संग आप-बल भारत-संध: और रामूना के अभिगोग की चर्चा मे लग्न हैं। भोजन करके, पहने यी आम्री दी हुई बात फिर आरम्भ हो जाती हैं-वहीं भारत-संघ और यमुना । मन्दिर के किसी-किसी मुखिश को शास्त्रार्थ यी गूली । भीतर-भीतर आयोजन होगे अगा। पर, अशी कर कोई प्रस्ताद नही आया था । उधर यमुना के अमियोग के रािए सहायतार्थ गन्दा भी आने लगा । यह दूसरी ओर की प्रतिक्रिया गी । १८ : प्राइ वाङमय