पृष्ठ:कंकाल.pdf/२१२

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सरला के हुदा में स्नेह का इंचार देखकर गगन का हृदय भी स्निग्ध हो माना । उसको गहुत दिनों पर इतने सहानुभूति-सूचः शब्द पुरस्कार में मिले थे। गंगन इपर लगातार कई दिन धूप में परिश्रम करता रहा । अनि उसकी शाँखें लाल हो रही थी। घामान में गाडी हुई चौकी पर जाकर लेट रहा। घर का आतंक उसने ऊपर छा गया था। वह अपने मन गे सोश रहा था कि बहुत दिन हुए चार पड़े–काग कर के रोगी हो जाना भी एक विश्राम है, चलो कुः दिन छुट्टी ही राही । फिर यह सोचता कि मुझे बीमार होने यी आवश्यकता नही; एक पूंट पानी तक को कोई न पूछेगी। न भाई, महे सुख दुर रहे। र, उमरे अस्वीकार गरने से क्या दुध न आते ? उसे जर आ ही गया, यह एक कोने में पड़ा। | निरंजन उस्राव की तैयारी में व्यस्त या। मगल के रोगी हो जाने से सूर्य मा का द गया। शरणजी ने कहा-तब तक सा के लोगों के उपदेश के लिए मैं सम-कथा माँगा और सुर्खमाधारण के लिए प्रदर्शन को वे मंगल स्वस्थ होगी, त्रिया जायगा। बहुत-से लोग बाहर से भी आ गये थे। उप में घडी चहल-पहल थी; पर मंग' वर में अचैत रहा। कैवज्ञ सरला असे देखती थी। आज तीव्ररा दिन था, पर मै तीव्र दाह था, अधिक वेदना से सिर में पीड़ा धी; न सिरन ने कुछ समय के निए ट्री देकर सरना को स्नान करने पे लिए भेज दिया था। सबेरै फी ऋण जंगले मे भीतर जा रही थी। उसके प्रपा में मंगत को रक्तपणं आप भीषण वार्ता में चमक उठता। मगन ने कहा--गला ! लडकिया था पढाई वतिक पास बैठी थी। उसने समझ लिया रिः ज्वर की भीषणता गे गगन प्रलाप कर रहा है। वह प्रवरा उठी। सरना इतने में स्नान कर के आ चुकी थी। सनिका ने प्रसाप की सूचना दी। सरक्षा उसे वही रहने के लिए सफर गोस्वामी के पार गई। उराने कहा-महाराज ! मगन का वैर भयानक ही गया है। वह शाला का नाम और चीः उठता है। | गोस्वामीजी पूछ चिन्तित हुए ।-कुछ विचार कर उन्होने कहा-सरला, बिग बी कोई बात नहीं, मंगल शन्न अन्डा हो आयगी। मैं गाजा को वुथाहर हैं। | गोस्यामीडी की आशा से एक छात्र उनका पत्र नैकर संकरी गया ! इधरे दिन गाता उसने गाय घा गई। मैमुना नै उतै देया । वह मंगल में दूर रखा। फिर भी न जाने क्यों उसका हुइय यनोट उटता; पर घडू लाचार पी।

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