पृष्ठ:कंकाल.pdf/२१७

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अलोक-प्रधनी यमुना, अपने कुटीर में दीपक बँझाकर गैठी रही । उन आशा थी कि बाताभन और आरो से राशि-राशि प्रभात का धदत आनन्द उखके प्रकोष्ठ में भर जागा; पर जवे समय आमा, किरने फूटी, तब उसने अपने याज्ञायतो, गरोष और द्वारों को सुइ वर दिया ! आंखें भी बन्द कर ली । आलोग कहां से भाये | बहू चुपचाप पड़ी थी। उसूके जीवन की अनन्त रजनी उसके चारों ओर घिरी थी । | मा में भाषर द्वार खटखटाया । वृद्धार की भाशा में आज -ए में उत्साह था। यमुना हैंसने की चेष्टा केरी हुई वाहर धाई । लतिका ने कहाचखोगी हुन यमुना ! स्नान करने ? पग बहन, घोती ले लें ! दोनो अभिम के बाहर हुईं । चलते-खाते लतिका ने कहा–बहिन सरला का दिन भगवान् में जैसे लौटाया, मैमा' राब का लौड़े । उहा, पीसौं बरस पर किसका खदा लौटकर गोद में आता है ।। सुरक्षा के धैर्य का फल है बहन ! गुरन्तु सबका दिन लौट, ऐसो सो भगवान् की एना गहीं देखी जाती । बहुतो वा दिन बाभी न जौटने के लिए चला जाता है। विशेषकर स्त्रियों का। मेरी रानी। जब मै स्त्रियों के ऊपर दया दिखाने का उत्साह पुरुषो मैं देखती हैं, तो जैसे पट जाती हैं। ऐसा जान पड़ता है कि यह सब मौजा, स्त्री-जातं की लज्जा को मेघमाला है । उनकी सहाण परि स्थिति का ब्यंग-उपहास है। यमुना ने कहा। ततिका ने आश्चर्य से अखें बड़ी करनै हुए कहा–राच कहती हो यहून ! जह पता नहीं है, वह पराधीनता वा आन्दोलन है; और जहाँ में सभ मान हुए नियम ६, यही कौन-सी अछी दशा है । यह नुय है कि किसी विशेष समाज में शिवं भी कुछ विशेष सुविधा है । हाय, यि, पुरुष यह नहीं जानते कि स्नेहमम धणी नुविधा नहीं चाहती, बहू म चाहती है; पर गन तथा भिम उपकरणों से भरा हुआ है कि समझौते पर ही संसार के सी-पुरुप | पहार १८६ : भेरीब चाइ, मम