पृष्ठ:कंकाल.pdf/२१८

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चलती हुभा दियाई देता है। इसका समाधान करने के लिए कोई निपम या संस्कृति असमर्घ है ।। मुझे ही देखी हैं, मैं ईसाई-रामाज की स्वतन्त्रता में अपने को सुरक्षित छद्मपक्षी थी; पर भला मेरा धन मेरा रहा ! तभी हुम स्त्रियों के भाग्य में लिखा है कि उड़कर भाग हुए पो व पीछे, चारा और पानी से भरा हुभा पिंजरा लिये घूमती रहे। यमुना ने कहा- कोई समाज और धर्म स्त्रियों का भी वहन ! सध पुरापा के है । सबै हृदय को कुचलनेवाले क्रूर है । फिर भी मैं सभइरती है कि स्त्रियों की एक धर्म है, वह है मापात सहने की क्षमता रखता । दुर्दैव के विधान ने उनके लिए पही पूर्णता बना दी है। यह उनकी रचना है । दूर पर नन्द और घण्टी जाती हुई दिखाई पडी । लतिका में पुकारा, दोनों ठहर गई । जतिका, नमुना के साथ दोनों के पास जा पहुँची । | नन्दो ने समुना की ओर संकुचित दृष्टि से देखा, और घण्टी की आँखो मे स्नेह को भिक्षा थी 1 रान चुप थी। अबका रहस्प सबका सा भोट रहा था । किसी के मुख से एक शन्द भी न निकना । स यमुना तट र पहुँची। स्मान बरते हुए घण्टीं और क्षतिका एकत्र हो गई, और उसी तरह चाची और यमुना ना एक चुदाँव हुआ । महू स्भिक था। घण्टी में अंजली में जल लेकर लतिका से कहा- हुन ! मैं अपराधिन है, मुझे क्षमा करोगी ? | कालिका ने कहा—बहन | हम लोगों का अगाध स्थय दूर चला गया है। यह तो मैं जान गई हैं कि इसने तुम्हारा कोई दोष नहीं हैं। हम दोनों एक ही स्थान पर पहुँचनेयालो थी; गर सम्भवतः पाककर दोनों ही लौट आई । कोई पहुँच जाता, तो &प सम्भावना थी, ऐसा ही हो संसार का नियम है; पर अब सो हम दोनों एक-दूसरे को समझा सकती है, सन्तोष कर किती हैं। भण्टी क रारा उपम यही है बहन 1 तो उसे क्षमा कर दो। भाज ॐ मुझे बहन वर बुलाओगी ग ? नतिका ने देशा, नारी-हृदय गल-गलकर या मी राह से उसकी अजसी । यमुना-जल में मिल रहा हैं । यह अपने को न रोक सकी, लक्षिा और घण्टी गले से लगकर रोने लगी । लेतिया ने कहा--आज से दुःख में, सुख में, हुम लोग कभी साथ न शेगों । यहुन । संसार में गला बाँधकर जीवन बिताऊँगा, गगुना साक्षी हैं। दूर यमुना और नन्दो चाची ने इस दृश्य की देखा । नदो का मन न जान कंकाल : १६