पृष्ठ:कंकाल.pdf/२२२

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अत्यन्त प्राचीनकाल में भी इस दर्द-विद्वेद वा ~~-4-सप फा--- सारी समायण हैं--- | छम वर्ण-भेद के बयान संघ का यह इतिहाय नकर भी, नित्य नृप्ता ६ नर भी भला हमारा चैप कुछ समझता है ? नहीं, यह देश समगा भी नहीं । बजा ! -भत, सामाजिक जीवन का प्रियात्मक विभाग है। यह जन्ती के कल्याण के लिए बना; परन्तु है की "ट में, ६ वा निम्मा गर्व उत्पन्न करने में, वह अधिक सहायक हुआ है। जिसे -बुद्धि से इराकी भारम्भ हुआ, वह में रहा, गुण-कर्मानुसार वर्षों की स्थिघि नष्ट होकर, श्राभिजात्य के अभिमान में परिपत हो गई, उसका व्यक्तिगत परीक्षाफक नियम के लिए, व * शुद्ध वर्गीकरण के लिए नर्तमान अतिवई व भिटानी होग- --नि, दिया और विभवे को प्रेमी सम्पत्ति विम हाई-माप्त के पुतले के भोर वालामुहकी अग्रज उरे, कोई नहीं जानता ! इत्तिए ने त्रार्थ के विवाद हुकर, इस दिव्य ति –अर्य-मानव-संस्कृति- संदी में नन्दना श्वाहिए । गंवान् का स्मरण कर मार-जयहिं पर अगर करने से विरत हो । विसी को शबरों गैः सदृश अग्रत न मो, हिसः को अल्मा के मद्दश गाभिमी मत नहो । किमी को नषु न समझेर । सर्वभूत-हित-त र भगवान के लिए पर्थरब सर्पण करें, निर्भम रो! यदि का विभूति को समाज ने वाट निया है, "रितु जग में स्व यं को भगवान पर भी अपना अधिकार जमाये देखता है, तब मुरी है। माही --- और भी हंसी आती हैं—जेय उस अधिकार की घोपणा करके सूत्रों को वे छोटा, नीच और पतित ठहराते हैं। बहु-रचारिणी जायला के गुर सरफाई का कृापवि में अापत्र स्वीकार किमी था; किन्तु पति, पतन और दुर्बलताओ के ब्रा र मैं घबराती नही। जो दोपु आँखों में पतित हैं, जो निसुई-दुर्बल हैं, उन्हें अवलम्ब बना 'भारत का उद्देश्य है। इसलिए, इन स्त्रियों की भारत-घ में पुनः तौटते हुए बड़ी सन्तोष होता हैं। इन लज्ञिकी देवी ने अपना सर्वर दान किया है । इस पैन में स्त्रियों को पाठशाला गोली थी, जिसमें भी *ता की शिक्षा के साथ में इस प्रोग्य इन जग निः घरों में पदों में दीवारों के झी नारी-नाति के मुख, स्यारुप और संपत रतन्त्रता की घोषणा करं, न्हें सीयता चाई, जीवन के अनुभवों से भवगत कर । उमग उन्नति, सहानुभूति, क्रियात्मक भैरण का प्रकाश्य फैलाएँ । हमारा देश इस सन्दंश से नवयुग के सन्देश में स्वायाभ झरे । इन आर्मजलधाओं का उत्साह नै हो, यही भगवान से प्रार्थना है। अब आप मंगलव का ब्यान सुनेंगे, वे नारी-प्राप्ति के संकलि : १०३