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देगे वे उपयुक्त वने-पही मैरी प्रार्थना है । | आनन्द की करतलध्वनि हुई। मंगलदेव बैठा । गोरखामनी नै जफर पहा--आज आप लोगों को एक और इप-समाचार सुनाऊँगा । सृनागा ही नही, आप लोग उस आनन्द के साथ होगे। मेरे शिप्प मंगल देव का, हापर्व की समाप्ति के गृहस्थाश्रम में प्रवेषा करने का शुभ मूर्तं भी आग ही है । यह कॉनन-वासिनी गुजर-बालिका गाला अपने ससाहस और दान से सीकरी में एक बालिका विद्यालय चला रही है। इसमें भगलदेव और गाना दोनों का हाथ है । मैं इन दोनों पवित्र हायो को एवः वंधन में बांधता हैं, जिसमें सम्मिलित हतिः मैं ये लोग मानव-सेवा मै अग्रसर हो और यह परिणय समाज के लिए आदर्श कोलाहुए गन होगा, राब लोग गाला म देखने के लिए उत्सुक हुए । मला गाला, गोरवामीजी के रात से उठकर सामने आई। बृणशरण नै प्रतिमा से दो माला लेकर दोनों को पहना दी। हर्ष-कोलाहल हो रहा था। उसी में मिशी ना डरावना कष्ट सुनाई पड़ाअच्छा तौ है । पंगेज और वर्धनो नौ सन्तानो झी स्पा ही गुन्दर जौड़ी है !! गाला और मंगलदेव ने चौपाकर देखा-पर उस भीड़ में कहने वाला में दिखाई पडा। भी के पीछे बम्बल ओने, एक शनी दाढ़ी-मूठ वाले युवक का कन्धा ट्रिघर तारा ने कहा-विनम बाबू ! बाप पत्र प्राण देगे ! दृटिए पी से, अभी वङ्ग धटना टटया है ! नये, नहीं, विजय ने चूमकर कहा--पगुना ! प्राण तो बन ही गया; पर, बहु मनुष्य,.. | वारा पति काटकर कहा—बड़ा डोगो है, यण्ड हैं, यहीं न कहना चाहते हैं आप ! होने दीजिए, आप रासार-भर के ठेकेदार नही–चलिए । तार उसका हाथ पकड़कर अन्धकार बी ओर से चली । २०६ : प्रसाद वाड्मय