पृष्ठ:कंकाल.pdf/२२८

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फिशरी ! मैंने खोजकर देखा कि मैंने जिसको चासे बड़ा अपराधी समझा पा, गहीं सबसे अति पवित्र है ! वहीं यमुना तुम्हारी दासी ! तुम जानती होगी कि तुलारे अन्न से पलने के कारण, विजम के लिए फांसी पर चढ़ने जा रही थी, और मैं—जिसे बिजय पर ममत्र था--दूर-दूर खडा धन से सहायता वरना चाहता था। भगवान् ने ममुना को भी बचाया, यद्यपि बिंजय का पता नही । हां, एक बात और सुनोगी, में आज इसे स्पष्ट कर देना चाहता है। हुखार वाली निधना मी को तुम न भुनी हो, वह तारा (यमुना) उसी गैः गर्भ से उत्पन्न हुई हैं । मैंने उसकी सहायता करनी चाही और लगा था कि निकट भविष्य में उसकी सांसारिक स्थिति सुधार हैं। इसलिए मैं मारत संघ में लगा, रार्वजनिक काम में सहयोग करने लगा; परन्तु कहना न होगा वि इसमें 4 या ढोग पाया । गम्भीर मुद्रा का अभिनय करके अनेक रूपों में उन्हीं व्यक्तिगत दुराचारों ने छिपाना पड़ता है, चामूहिवः कप से यही मनोवृति काम करती हुई दिखाई पड़ती है । संघों में, समाजों में, मेरी श्रद्धा न रहीं । मैं विश्वास करने लगा उस थुतियाणी में कि वैधता को अप्रत्यक्ष है, मानव-बुद्धि में दुर कार है, रात्य है और मनुष्य इतृत हैं । चेष्टा करके भी उस सत्य को जो प्राप्त करेगा । जरा मनुष्य को मैं कई अन्मों तक केवल नमस्कार करके अपने को कुतत्य समझंगा । मेरे संह में लगने वा मूल कारण बही यमुना थी । कैयन धर्माचरण ही न था, इसे स्वीकार फेरने में मोई सुकोच नहीं; परन्तु वह बिजय के समान ही ती उच्च का है, वह अभिमानी चली गई। मैं सोचता है कि मन अपने दोनो को खो दिया । अपने ना पर तुम हैरागी, विन्तु वे माई मेरै न , तब भी मुदो ऐसी शांता हो रही हैं कि सारा की मावा रामा से मेरा अवैध सम्बन्ध अपने को अलग नहीं । सकता। । मैंने भगवान् की ओर से मुंह मॉशर गिट्टी के खिलौने में मन' लगाया आ। वे ही मेरी और देखर, मुस्कुराते हुए त्याग पत्र परिचय दैगर चले गये और मैं कुछ टुकड़ो को–चीथड़ों को–सम्हालने-सुलाने में व्यस्त बैठा रहा। .. किशोरी ! सुना है कि सुन छीन लेते हैं भगवान मनुष्य से, ठीक उसी प्रकार से पिता खिलवाड़ी लड़के के हम से खिलगा ! जिससे ना पड़ने-लियने में गन नगयि । मैं अन यहीं समझता है कि यह परमपिता का मेरी भोर संकेत है। हो या न हो, पर मैं जानता है कि इसमें क्षमा की कमता है, गैरे हृदय घी --ौफ ! कितनी भीषण हैं. वह अनन्त सृष्णा । —संसार के विन्तने ही *विही गर लहरानेवाली जल पी पहली राहों में गुरु की तरह नोट चुकी है! केवल : २०