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कुछ-कुछ समझा। कुछ उसे संदेह हुआ। परन्तु यह सम्मलकर बोला सब आप ही ठीक हो जायगा, अभी अल्हड़पन हैं।अच्छा फिर आऊँगा।

वीरेन्द्र और मंगलदेव उठे, सीढ़ी को ओर चले। गुलेनार ने झुककर सलाम किया; परन्तु उसकी आँखें पलकों का पत्ता पसारकर करुया की भीख माँग रही थी। मंगलदेव ने–चरित्रवान मंगलदेव ने-जाने क्यों एक रहस्यपूर्ण संकेत किया। गुलेनार हँस पड़ी,दोनों नीचे उतर गये।

मंगल! तुमने तो बड़े लम्बें हाथ पैर निकाले-कहाँ तो आते ही न थे, कहाँ ये हरकतें ! वीरेन्द्र ने कहा।

वीरेन्द्र! तुम मुझे जानते हो; परन्तु मैं सचमुच यहाँ आकर फँस गया। यही तो आश्चर्य की बात है।

आश्चर्य काहे का, यही तो काजल की कोठरी है।

हुआ करे,जलो ब्यालू करके सो रहे।सवेरे की ट्रेन पकड़नी होगी।

नही वीरेंंद्र, मैंने तो कैनिंग कालेज में नाम लिखा लेने का निश्चय-सा कर लिया है,कल मैं नहीं चल सकता !-~-मंगल ने गंभीरता से कहा।

वीरेन्द्र जैसे आश्चर्य-चकित हो गया। उसने कहा--मंगल, तुम्हारा इसमे कोई गूढ़ उद्देश्य होगा। मुझे तुम्हारे ऊपर इतना विश्वास है कि मैं कभी स्वप्न में भी नहीं सोच सकता कि तुम्हारा पद-स्खलन होगा; परन्तु फिर भी मैं कंपित हो रहा हूँ।

सिर नीचा किये मंगल ने कहा-और मैं तुम्हारे विश्वास की परीक्षा करूँँगा। तुम तो बचकर निगल आये;परन्तु गुलेनार को बचाना होगा। वीरेन्द्र में निश्चयपूर्वक कहता हूँ कि वह वहीं बालिका है, जिसके सम्बन्ध में मैं ग्रहण के दिनों में तुमसे कहता था कि मेरे देखते ही एक बालिका कुटनी के चंगुल में फँस गई और मैं कुछ न कर सका।

ऐसी बहुत-सी अभागिनी इस देश में हैं। फिर कहाँँ-कहाँ तुम देखोगे?

जहाँ-जहाँ देख सकूँगा।

सावधान!

मंगल चुप रहा।

वीरेन्द्र जानता था कि मंगल बड़ा हठी है, यदि इस समय मैं इस घटना को बहुत प्रधानता न दूँ, तो सम्भव है कि वह इस कार्य में विरक्त हो जाय,अन्यथा मंगल अवश्य वही करेगा,जिससे यह रोका जाय; अतएव वह भी चुप रहा।सामने ताँगा दिखाई दिया। उस पर दोनो बैठ गये।

दूसरे दिन सब को गाड़ी में बैठाकर अपने एक आवश्यक कार्य का बहाना

१६:प्रसाद वाङ्मय