पृष्ठ:कंकाल.pdf/२३०

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पत्र पढ़कर किशोरी ने रख दिया । उसकै दुर्बल श्वास उत्तेजित हो उठे, वह फूट-फुटकर रोने ली। गरमी में दिन थे । दस ही बजे पवन में ताप हो चला था। श्रीचन्द्र ने आकर बहाः--पंखा खीचने के लिए दासी मिल गई है, यही रहेग, चैवल खानाकृपया लेगी । पीछे खड़ी दो करुण आंखें चूंघट मे झांक रही थी। | धचन्द्र चले गये । दासी आई, पास गावर किणौरी पी खाट पकडकर बैठ गई। किशोरी ने आंसू पोछते हुए उाझी र देखा-वह यमुना –तारा थी । कान : २१