पृष्ठ:कंकाल.pdf/२३४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

कभी नहीं किया था, सब भी तुमने मुझै किन्नर बचाया-कितनी रक्षा की । ३ मेरे देन ! मेरी ममकार ग्रहण करो, इरा नारितक का समर्पण स्वीकार करों ! अनाथों के माय ! तुम्हारी जम ही ! उसी ६१' इसुकै हृदय की गति बन्द हो गई। अड़ थी भारत-संग का पद न निकलने वाला था। देणार्यमग्न घाट पर उसका प्रचार होगा । सब जगहू वड़ी भीड है । अागे स्त्रियों का दल था, जो बड़ा स्वी करुणगीत गाता जा रहा था। पीछे झुछ स्वयंसेवन की थै' थी। स्त्रियों के अरगे-आगे घण्ट और लतिका थीं । जहाँ से दशाश्वमेध के दो मार्ग अलग हुए हैं, वहाँ आकर वे लोग अलग-अलग होकर प्रचार करने लगे। घण्टी उस भिखमंगोबाले पीपल के पारा खड़ी होकर बोल रही थैः । इसके मुख पर शान्ति श्री, पए में स्निग्धता थे। वह् ह र —सर ये इतनी अवश्यकहा कि अम पस्तु की नहीं, जितनी सेवा व । दै--कितने अनाप यहाँ अ-वस्त्र बिहीन, बिना किल्ली औषधि-उपचार के मर रहे हैं । है पुण्यापियो । इन्हें न भूलो, भगवान् अभिनय करने इराभे पड़े है; वह तुम्हारी परीक्षा ले रहे हैं । इतन ईयर के मन्दिर नाट हो रहे हैं प्रामको ! जब भी चेत ! सहसा उसको या वन्द हो गई। इसमें स्थिर दृष्टि से एक पड़े हुए गले को देश, हे बोल उठीं देखा वह पैशारा अनाहार से मर गया-सा मालुम गता है। इनका सृस्कार... हो जायगा ! हो जायगा ! आप इसकी चिन्ता न पोजिए, अपनी अमृतनापी बरसाए ! –जनता में कोलाहल होने लगा किन्तु वह आगे बढ़ी, मीड भी इधर ही जाने लगी । पीपल के पास जनाध्य हो चला ।। | मोहन अपनी धाय के मग गेला देखने थामा था । जह, मान-मन्दिरवाली गर्ल वे कोने पर जहा था। उसने धार से कहा- दाई, मु यहाँ से चलकर भल्ला दिखाओ, पहली मेरी अछी दाई । यमुना ने कहा—मेरे लाल 1 यद्धी भी हैं, वहां नया है जो देखोने ? मोहन ने कहा—फिर हम तुमको पटरी ! तब म पानी घट्ट तमन्ने जाओगे, जो वेगा वहीं कहेगा कि यह सबको अपनी दाई को पीटता हैं!–चुम्बन लेकर यमुना ने इंसते हुए कहा। अकस्मात् इसको दृष्टि विजय के घन पर पड़ी । नई घबराई कि क्या करे । पास ही श्रीनन्न । दृल रहे थे। उने मोहन को उनके पास पहुँचाधे हुए हाथ जौटकर कहा—बाबूजी, मुझे दस रुपयै दीजिए । कंकात : २१५