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पिताजी ने मेरा तिरस्कार किया, मैं क्या करती चाची।तारा रोने लगी।

चाची ने सान्त्वना देते हुए कहा--न रो तारा।

समझाने के याद फिर तारा चुप हुई; परन्तु वह फूल ही थी। फिर मंगल के प्रति संकेत करते हुए चाची ने पूछा-क्या यह प्रेम ठहरेगा? तारा, मैं इसीलिए चिन्तित हो रही हूँ। ऐसे बहुत-से प्रेमी संसार में मिलते हैं; पर निबाहने वाले कम होते हैं। मैंने तेरी माँ को ही देखा है।--चाची की आँखों में आँसू भर आये; पर तारा को अपनी माता का इस तरह का स्मरण किया जाना बहुत बुरा लगा। वह कुछ न बोली।चाची को जलपान कराना चाहा; पर वह जाने के लिए हठ करने लगी।तारा समझ गई और बोली-अच्छा चाची। मेरे ब्याह में तो आना।भला और कोई नही, तो तुम तो इस अकेली अभागिनी पर दया करना।

चाची को जैसे ठोकर लग गई। वह सिर उठाकर कहने लगी-कब है? अच्छा-अच्छा आऊगी।—फिर इधर-उधर की बातें करके वह चली गई।

तारा ने सशंर होकर एक बार उस विलक्षण चाची को देखा,जिसे पीछे से देखकर कोई नहीं कह सकता था कि चालीस बरस की स्त्री है। वह अपनी इठलाती चाल से चली जा रही थी। तारा ने मन में सोचा–ब्याह की बात करते मैनें अच्छा नहीं किया; परन्तु करती क्या, अपनी स्थिति साफ करने के लिए दूसरा उपाय ही न था।

मंगल जब तक लौट न आया,वह चिन्तित बैठी रहीं।

चाची अब प्रायः नित्य आती।तारा के विवाहोत्सव-संबंध की वस्तुओं की सूची बनाती। तारा उत्साह से भर गई थी। मंगलदेव से जो कहा जाता, वहीं ले आता।बहुत शीघ्रता से काम का प्रारंभ हुआ। चाची को अपना सहायक पाकर तारा और मंगल दोनों प्रसन्न थे। एक दिन तारा गंगा-स्नान करने गई थी। मंगल चाची के कहने पर आवश्यक वस्तुओं की तालिका लिख रहा था।वह सिर नीचा किये हुए लेखनी चलाता था और आगे बढने के लिए 'हूँ' कहता जाता था।सहसा चाची ने कहा-~परन्तु यह ब्याह होगा किस रीति से? मैं जो लिखा रही हूँ वह तो पुरानी चाल के व्याह के लिए हैं।

क्या ब्याह भी कई साल के होते हैं ?--मंगल ने कहा।

क्यों नही-गम्भीरता से चाची बोली।

मैं क्या यहीनूँँ, आर्य-समाज के कुछ लोग उस दिन निमंत्रित होगे और यह

कंकाल:३५