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क्यों ?

इसके लिए घण्टों का समय चाहिए, तब तुम समझ सकोगे। अपनी वह रामकहानी पीछे सुनाऊँगा, इस समय केवल इतना ही कहे देता हूँ कि मेरे पास एक भी पैसा न था, और तीन दिन इसलिए मैंने भोजन भी नहीं किया। तुमसे यह कहने में मुझे लज्जा नहीं।

यह तो बडे आश्चर्य की बात है ! आश्चर्य इसमें कौन-सा ?–अभी तुमने देखा है कि इस देश की दरिद्रता कैसी विकट है वैसी नृशंस हैं ! कितने ही अनाहार से मरते हैं। फिर मेरे लिए आश्चर्य क्यों? इसीलिए कि मैं तुम्हारा मित्र हैं ?

मंगलदेव ! दुहाई है, घण्टो नहीं मैं रात भर सुनूँँगा। तुम अपना रहस्यपूर्ण वृतांत सुनाओ। चलो कमरे में चले। यहाँ ढंठ लग रही है ।

भीतर तो बैठे ही थे, फिर यहाँ आने की क्या आवश्यकता थी? अच्छा चलो परन्तु एक प्रतिज्ञा करनी होगी।

यह क्या ?

मेरा सोना बेचकर कुछ दिनों के लिए मुझे निश्चिन्त बना दो।

अच्छा भीतर तो चलो।

कमरे में पहुँचकर दोनों मित्र बैठे ही थे कि दरबाजे के पास से किसी ने पूछा--विजय, एक दुखिया स्त्री आई है, मुझे आवश्यकता भी है, तू कहे तो उसे रख लूँ।

अच्छी बात है माँ ! वहो न जो बेहोश हो गई थी।

हाँ वही, बिलकुल अनाथ है।

उसे अवश्य रख लो। एक शब्द हुआ, मालूम हुआ कि पूछने वाली चली गई थी। तब विजय ने मंगलदेव से कहा- अब कहो।

मंगलदेव ने कहना प्रारम्भ किया—मुझे एक अनाधालय से सहायता मिलती थी, और में पढ़ता था। मेरे घर कोई है कि नहीं, वह भी मुझे नहीं मालूम पर जब मैं सेवा-समिति के काम से पढ़ाई छोड़कर हरद्वार चला गया, तब मेरी युक्ति बन्द हो गई। मैं लौट आया। आर्यसमाज से भी मेरा कुछ सम्पर्क था; परन्तु मैने देखा कि वह खण्डनात्मक है; समाज में केवल इसी से काम नहीं चलता। मैंने भारतीय समाज का ऐतिहासिक अध्यनन करना चाहा और इसीलिए पाली,प्रकृत का पाठ्ययक्रम स्थिर किया। भारतीय धर्म और समाज का इतिहास तब तक अधूरा रहेगा, जब तक पाली और प्राकृत का उससे संबंध न हो; परन्तु मैं बहुत

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