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वह चुपचाप, विजय के बनाये कलापूर्ण मित्रों को, जो उस कमरे में लगे थे, देखने लगा। इसमें विजय की प्राथमिक कृतियाँ थी-अपूर्ण मुखाकृति, रंगो के छोटे से भरे हुए कागज तक चौखटो में लगे थे।

आज से किशोरी की गृहस्थी में दो व्यक्ति और बढे।

कंकाल:५३