पृष्ठ:कंकाल.pdf/७५

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विजय फौ चैद हुआ; पर दुःख नहीं। यह यॐ द्विविधा में पड़ा या 1 मंज से उसको प्रगति में पाया गया हो गया था। सूत्र के लड़कों को जैग्री सुम्यो छट्टी को प्रसन्नता मिली है, टीक उसी तरह विजय ने हृदय में प्रफुल्लवी मरने लगी । बड़े उत्साह से वह भी अपनी तैयारी में लगा । फेसक्रीम, गोमेड, हु, पाउडर, यश आकर उसपे बैग में जुटने कागे । तौलियों और सुगन्यों की भरमार से बेर ठसाठस भर गया । किशोरी भी अपने प्राभान मैं नग यो । यमुना कम वसुः और कमी विप के सायनों में सहायता करती। वह घुटनों के बल बैठकर विजय की सामग्री बड़े मनोयोग से हैडबैग में सजा रही हो । विश्य कहता- नहीं यमुना ! तोसिपा सो इस बैग में अवश्य रहनी चाहिए यमुना कहती-इतनी सामग्री इरा छोटे पान में समा गही सर । वह दूक में रख दी जायगी । जिम में वहा—मैं अपने अत्यन्त आवश्यक पदार्थ अपने मौप रख घाइता हैं। |प अपनी आगेश्मशताओ का ठीक अनुमान नहीं मार सकते हैं संभवतः बापफा निा बड़ा हुमा रती है। नहीं यमुना । वह मैरी नितान्त भविश्यकता है। अन्य तो सब बस्तु अप मुझसे माँग लगिएगी, देखिए जय कुछ भी घटे । विजय ने विचार कर देखा कि ममुना भी तो मेरी सबसे बढ़कर आवश्यकता की मस्तु है । यह इसशि होकर सामान से हट गया। यमुना और फियो । ही मिलकर सर्व सामान ठीक कर तिथे । निश्चित दिन आ गया । दैल का प्रयन्ध पते । ठोक कर लिया गया था विशोरी मनै कुछ राहेलियाँ भी जुट गई पी। निरञ्जन थे प्रधान सेनापति । बहे छोटी-सी होना पहास! पर चढ़ाई करने च । चैत बार एक सुन्दर प्रभात था । दिन मातम में भरा, अवख़ाई से पूर्ण फिर भी मनोरंजकता थो, प्रवृत्ति यी | पल्लास के युवा ज्ञान हो रहे थे । नई-नई पत्तियों के अपने पर भी जंगची शृक्षों में पनापन न था। बौखलासा हुआ मुर में इक्कम-मुक्की कर रहा था । पहाड़ी के नीचे एवः लसी पी, जो बरसात में गर जाती है। आज-कल मैत्री हो रही थी। पत्रों में ट्रकों से उनकी यौन बनी हुई थी, वही एक नाले का औं अन्त होता था। यमुना एक छपके पर मै’ गई । पारा ही हैंधेग घरा था। वह पिछड़ी हुई औरतों के आने वी बाट जोह रही थी और विनय शैलपम से ऊपर सबथैः आगे चड गैहा था। ५६ ६ घाब प्राइमर