पृष्ठ:कंकाल.pdf/७७

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निगम को रुयाई जान पड़ी, उसने भी आत बदल दी। कहा--तुमने दो कहा था कि सुपको जिस वस्तु की आवश्यकता होगी, मैं दूंगी, यहाँ मुझे कुछ आवश्यकता है। | अमुना भयभीत होकर विजय वै आतुर मुझे का अध्ययन करने लगी । कुछ ३ घौली 1 विजय ने राहूम कर कहा-मु प्यास लगे हैं । | यमुना ने बैग में से एक बेटी- चाँदी की लुटिया निकाली, मिसूर साप पत्रणी रंगीन हो लगी थी । यह मूरैया की झुरमुर्ट की धूसरी और चली गई । बिजम चुपचाप सोचने लगा; और कुछ नहीं, केवल ममुनी ॐ स्वछ कपलों पर गुनारे रंग की छाप । जन्मत्त हुदय--किशोर हृदय, स्वप्न देखने लगा-तांबून रा-ञ्जित, वन-वित कपोतो की ! वह पागल हो उठा। यमुना पानी लेकर आई, बेग से भिराई निकालकर विजय के सामने रखे दीं । सधै लड़के की तरह विजय ने जलपान किंमा, तन पुछा–पहाड़ी के ऊपर ही तुम्हें जल कहाँ मिला ममुना ? पही तो, पास है। एक कुण्ड है। चलो मुझे दिखला दो। दोनों कुरैयै के झुरमुट की ओट में पले । चहौ सचमुच एक चौकोर पस्पर को कुण्ड था, उसमें जल लबालब भरा था 1 यमुना ने कहा---मुझसे यही पुके पंई ने कहा है कि महू कुड़ बाहर, गरम, बरसात, सव दिनों में बराबर भरा रहता है; शितने आदमी चाहे इसमें जल पिष, खाली नहीं होता। यह देवी का पगत्वार है। इसी से विन्ध्यवासिनी देवी से काम इरा पहाड़ी झीलों को देवी का मान नहीं हैं। बहुत दूर से लोग यहाँ छाते हैं। यमुना, हे घई आश्चर्य की बात । पहाड़ी के इतने ऊपर' मा मह जलकुण्डू सुन्नमुच अद्भुत है; परन्तु मैंने और भी ऐसा कुण्इ देखा है--जिसमें कितने ही जत पिएँ, वह भरा ही रहता है। सचमुच 1 कहां पर विजय बाबू ? सुन्दरी के रूप ना कूप-कहलर विजम यमुना के मुख म उसी माँट्टि देखनै लगा, जसे अनजान में बैला फेफर पाक चोट लगनेवाले को देखता है। | चाहे जिम धावू । आज-कल सायं का ज्ञान पढ़ा हुआ देखती है!! कहते हुए यमुना में नियाई पो भर देबी जैसे कोई बी-यूडौ, नटखढ़ चढ़के को ति से किती हो। विगय नजिन्न हो जा। इतने में 'बिजम वायु' की पुकार हुई–फिरी बुल्ला रही थी । वे दोनों देवी के सामने गने । किंगोरो मन-ही-मन मुफ़राई । ६८ : प्रसाद वाङ्मय