पृष्ठ:कंकाल.pdf/८९

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मगुना ने ठोकर मगन फी दगा में पदर पुडा- रिश्य प्रायू ! म दाणी होकार रहना भी भी मई माह के लिए अपमान पर पर्याप्त मात्र हो ज्ञात है ? यमुना ! तुम दा हो ? कोई मेरा इदर्य लकर पूछ देणे, गुग मेरी आष्य देषी --मार्थ हो ।—विजन इशिव मा ।। में झाराप्य देवता बना हु हैं-मैं विव हो मृी हैं मुहै... मह न अनुमति फर लिया है; परन्तु इन अरविमी में भी में इन्हें पवित्र, उप र कर्जवित पाता है-* मर ग * महारी दर्य । | निसी | सुपच की शीतलतर भौर ग्रिी के पग गो -4 र से अ है। मैं फन नहीं हुई, उसी पाप भी नहीं की। रिप बानू ! मैं देश की पाधी एक बहन का पहा है---३ रिहो के पति इतनी निःस्वार्थ लेह-शम्मति । मुझ ६ सुके ?--ई-कचे मन औ अधिों में अग्नि पर महे । विजय ग घाये हुए ला ३ गुमान धूम पड़ा-मैं भी था । मता है यई घर के बाहर निकप्त गया । म : प्रसाद दाम