पृष्ठ:कंकाल.pdf/९८

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मात्र बारा प्रायचित होने पर शोन ही उन वर्मों को शु शमा कराता है, और इसके लिए चराने अपना अयिंम रक्त जमा कर दिया है। पिता ! मैं तो समझती हैं कि यदि यई सत्य हो, तो भी इसका प्रचार न होना चाहिए, क्योंकि मनुष्य को पाप करने का आश्रय मिलेगा । वह अपने उत्तर- दायित्व से छुट्टी पा जया-रारला ने दृढ स्वर में कड़ा । एक क्षण के लिए पादरी चुप रहा। उसका मुंह तमतमा उठा। उसने कहा---अभी नही सरला | कमी तुम इस सत्य को चमझोगो। तुम मनुष्य के पश्चात्तापूर्ण एक दीर्घ निश्वास का मूल्य नहीं जानती झो–प्रार्थना में क्षुकी हुई आंखों के मनु यो एक बूंद का रहस्य तुम नही समझती ! मैं संसार की राताई है, ठोकर खाकर मारा-मारी फिरती है। पिता ! भग- वान् ने कोश को, उन स्याम को, मैं चत प्रसार कर लेती हैं। मुझे इसमे कायरता नहीं आता। मैं अपने कर्मफल को सच्चन करने के लिए घटा च समान सवल, कठोर ।। अपनी दुर्बलता के लिए वृतज्ञता का नाम मा गैरी निति ने मुझे नहीं सिखाया । मैं भगवान से यही प्रार्थना करती है कि, यदि ऐरी इच्छी पूर्ण हो गई, इस हाड़-मसि गे इस नेतना को रखने के दण्ड की अवधि पूरी हो गई, तो एक बार हुँच ३ दि मैंने तुझे उत्पन्न करने भर पाया । यतै-कतै सरला के मुंण पर एक अनोविक आदम-विश्वारा, एक सवेश दीप्ति गान छटो। उसे देकर पादरी भी चुप हो गया । क्षतिना और साथ भी मान्य रहे । | सरला के मुख पर योद्धे ही समय में पूर्व भाव सौट आयी । ३राने प्रकृतिस्य होते हुए विनोत भाग में प्रथा-पिता | एक प्यासी चाय से आऊँ! बायम ने भी बात बदलने के लिए चनु कहा-पिता ! जब एक भाप भाग पिये, राब तक पवित्र कुमारी का एक सुन्दर चित्र-जो एभयतः किसी पुर्तगाना नित्र वा–किसी हिन्दुस्तानो मुसब्बर की बनाई प्रतिकृति है, -नाकर दिख- ला; सैकड़ों यरस से कम वा न होगा। हो, यह तो मैं जानता है कि तुम प्राचीन कक्षासम्बन्धी भारतीय वस्तु वा पनसाय वाले हो । शौर, अमरीका या जर्मनी में तुमने इस व्यवसाय में बद्री मुख्याति पाई है; परन्तु आश्चर्य है कि ऐसे मित्र भी तुमको मिल जाते हैं । मैं अवश्य देगा |--कहकर पादरी कुरो रो टि गया। सला नाम साने गई और बायम चित्र1 नाता ने वैरी स्वप्न इयर अव स्रोती। ग्रामने पादरी को देखकर यह एक बार फिर आपे में आई। गाम में चित्र जतिकी के हाथ में देकर महा-मैं पम्प सेवा अङ, ।। बुढे पादरी नै उपन्छा दिलाते हुए प्या के मलिन अनोक में ही जम कोकस : ६६