पृष्ठ:कंकाल.pdf/९९

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नित्र को नतिजा के हाथ से लेकर देखना आरम्भ किया था कि यापम में एक सम्म लाकर देयुल पर रख दिया। यह ईंसा की जननी मरियम की एक मुन्दर शिव था । उसे दैवते ही जन की अखें भक्ति से पूर्ण हो गईं । वह वही प्रश्नता है वोला-जाधम ! तुम बड़े भाग्यवान हो, इस विष की येचमा मत ! सरला ने चाय लाकर टेबल पर रक्खी, और बाथम कुछ बोलना ही चाहती था कि रमण की कातर वन उन लोगों के सुनाई पडी-'बघा ! बचाओ !' बायम ने देखाएकं स्त्री दौड़ती-हाँफती हुई चली आ रही है, उसके पीछे दो मनुष्य भी । बाघम ने उसे स्त्री को दौडग़र अपने पीछे फेर लिया और थूसा सानते हुए कृपर कहा-आगे बढ़े, तो जान से मूंगा। पीछा करने वास ने देसा, एक गोरा मुँह ! वे उल्टे वैर लौटकर भागे । सरला नै तय तक उस भयभीत युवती को अपनी गोद में ले लिमा था । युनीं रो रही थी। सरला ने पूछाया हुआ है ! पबराओ मत, अब तुम्हारा कई कुछ न कर सकेगा। | पुर्वती ने कहा—विजम याबू को इन सबों ने मारकर गिरा दिया है। वह फिर रोने लगी । अबकी लतका न बाघम की और देखकर वहा–रामद्धारा को बुलाओं, सासन लेकर देथे कि भात क्या है ? वाग ने पुकारा-नदारा ! वह भी इधर ही दौड़ा हुआ था हा पा । लालन उसके हाथ में हैं । गाय उसके हार चला । धेश से निकलते झी बायीं और एक मोड़ पता था । यहाँ सड़क की नाली तीन फुट गह्री है, उसी में एक युवक गिरा हुआ विघाई पड़ा। बाथम ने उतरकर देखा कि मुर्बक आँखें खोल रहा है । सिर में चोट आने से वह क्षण-भर के लिए मुक्त हो गया था । विज़म पूर्ण स्वस्थ पुयक था । पीछे की आकस्मिय चोट ने उसे विवश कर दिया, अन्यथा वह दो के लिए कम न था । बागम के सहारे बहू उठकर खड़ा हुआ। अभी इसे चमकर अा रहा था, फिर भी उसने पूछा--प्टी फहीं है ! न्यायम ने कहा- मैं बैंगले में है। भवराने की आयश्यकता नहीं । चली । | शिम प्रीरे-धीरे बँगले में आया और एक आरामकुर्सी पर बैठ गया | इतने में चर्च को घण्टी बजा | पादरी ने चलने की उरावना प्रकट की। अतिका ने पाहा--पिता ! अधम प्रार्थना करने पाउँने, मुझे आज्ञा हो, तो इन विपक्ष मनुष्यों की सहायता छ, यह भी तो प्रार्थना से कम नहीं है। जाँन ने कुछ न कहर कुनहो उठाई, नाथग उसके साथ-साथ भला । अब, ६० : अव बीऊमध