पृष्ठ:कबीर ग्रंथावली.djvu/१६१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
७७
अपारिष कौ अंग

तरवर तास बिलंबिए,बारह मास फलंत ।
सीतल छाया गहर फल,पंषो केलि करंत ॥ ६ ॥
दाता तरवर दया फंल,उपगारी जीवंत ।
पंषी चले दिसावरां,बिरषा सुफल फलंत ।। ७ ।।७३२॥

_____


(४८)अपारिष कौ अंग


पाइ पदारथ पेलि करि,कंकर लीया हाथि ।
जोड़ी बिछुटी हंस की,पड़या बगां कै साथि ॥ १ ।।
एक अचंभा देखिया,हीरा हाटि बिकाइ ।
परिषणहारे बाहिरा,कौड़ो बदलै जाइ ।। २ ।।
कबीर गुदड़ी बीषरी,सौदा गया बिकाइ ।
खोटा बांध्या गांठड़ी,इब कुछ लियान जाइ ।। ३ ॥
पैंडैं मोती बीखरखा,अंधा निकस्या पाइ ।
जोति बिनां जगदीश की,जगत उलंध्यां जाइ ॥ ४ ॥

( १ ) इसके पहिले ख० प्रति में ये दोहे हैं-
चंदन रूख बदेस गयौ,जण जण कहै पलास।
ज्यौं ज्यौं चूल्है झोकिए,त्यूं त्यूं अधिकी बास ॥ १ ॥
हंसड़ौ तौ महारांण कौ,उड़ि पड्यौ षलियांह ।
बगुलौ करि करि मारियौ,सझ न जांणै त्यां ॥ २ ॥
हंस बगां कै पाहुगां,कहीं दसा कै फेरि ।
बगुला कांई गरबियां,बैठा पांख पषेरि ॥ ३ ॥
बगुला हंस मनाइ लै,नेडो थकां बहोड़ि।
त्यांह बैठा तूं उजला,त्यौं हंस्यौं प्रीत न तोड़ि ॥ ४ ॥
ख०--चल्यां बगां कै साथि ।