अबिगत अकल अनूपम देख्या,कहतां कह्या न जाई ।
सैंन करै मनहीं मन रहसै,गूंगै जांनि मिठाई ।
पहुप बिनां एक तरवर फलिया,बिन कर तूर बजाया।
नारी बिनां नीर घट भरिया,सहज रूप सो पाया ॥
देखत कांच भया तन कंचन,बिन बानी मन मांनां ।
उड़या बिहं गम खोज न पाया,ज्यूं जल जलहि समांनां ॥
पूज्या देव बहुरि नहीं पूजौं,न्हाये उदिक न नाउँ ।
भागा भ्रम ये कही कहतां,पाये बहुरि न पांऊं ।।
आपै मैं तब आपा निरष्या,अपन पैं आपा सूझता ।
आपै कहत सुनत पुनि अपनां,अपन पैं आपा बूझना ।।
अपनैं परचै लागी तारी,अपन पै आप समांनां।
कहै कबीर जे आप बिचारै,मिटि गया पावन जांनां ॥ ६ ॥
नरहरि सहजै हीं जिनि जांनां।
गत फल फूल तत तर पलव,अंकूर बीज नसांनां ॥टेक॥
प्रगट प्रकास ग्यांन गुरगमि थैं,ब्रह्म अगनि प्रजारी ।
ससि हर सुर दूर दूर तर,लागी जोग जुग तारी ।।
उलटे पवन चक्र षट वेधा,मेर-डंड मरपूरा ।
गगन गरजि मन सुंनि ममांना,वाजे अनहद तूरा ।।
सुमति सरीर कबीर बिचारी,त्रिकुटी संगम स्वांमी। .
पद आनंद काल थैं छूट,सुख मैं सुरति समांनी ।। ७ ॥
मन रे मन ही उलटि समांनां ।
गुर प्रसादि अकलि भई तोकौं,नहीं तर था बेगांनां।।टेक ।।
नेड़ै थैं दुरि दूर थैं नियरा,जिनि जैसा करि जांनां ।
औ लौ ठीका चढया बलींडै,जिनि पीया तिनि मांनां ।।
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