पृष्ठ:कबीर ग्रंथावली.djvu/२०२

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कबीर-ग्रंथावली


दास कबीर यहु कीन्ह बिचारा, ___ इक दिन है है हाल हमारा ॥३॥ देखहु यहु तन जरता है, घड़ी पहर बिलंबी रे भाई जरता है । टेक ।। काहे को एता किया पसारा, यहु तन जरि बरि ह है छारा । नव तन द्वादस लागी प्रागी, मुगध न चेतै नख सिख जागी॥ काम क्रोध घट भरे बिकारा , ____ प्रापहि पाप जरै संसारा ।। कहै कबीर हम मृतक समांनो , राम नाम छुटे अभिमांनां ।। ६४ ॥ तन राखनहारा को नाही, तुम्ह सोचि बिचारि देखौ मन माहीं ॥ टेक ॥ जोर कुटंब अपनौं करि पायौ, मूड ठोकि ले बाहरि जारयौ ।। दगाबाज लूटै अरू रोवै, जारि गाडि पुर षोजहिं षोवै । कहत कबीर सुनहुं रे लोई, हरि बिन राखनहार न कोई ॥ १५ ॥ अब क्या सोचै प्राइ बनी, सिर परि साहिब राम धनी ।। टेक ।। दिन दिन पाप बहुत में कीन्हां, नहीं गोव्यद की संक मनीं ।