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पदावली

लागैं प्यास नीर सो पीवै,बिन लागैं नहीं पीवै। "
खोजैं तत मिलै अबिनासी,बिन खोजैं नहीं जीवै ।।
कहै कबीर कठिन यह करणीं,जैसी षंडे धारा ।
उलटीं चाल मिलै परब्रह्म कौं,सो सतगुरू हमारा ॥ १७० ॥

   रे मन बैठि कितै जिनि जासी,
हिरदै सरोबर है अबिनासी ।। टेक ।।
काया मधे कोटि तीरथ,काया मधे कासी।
काया मधे कवलापति,काया मधै बैकुंठबासी ।।
उलटि पवन षटचक्र निवासी,तीरथराज गंग तट बासी ॥
गगन मंडल रबि ससि दोइ तारा,उलटी कूंची लागि किवारा ।
कहै कबीर भई उजियारा,पंच मारि एक रह्यौ निनारा ॥१७१।।

  रांम बिन जन्म मरन भयौ भारी ।
  साधिक सिध सूर अरु सुरपति,भ्रमत भ्रमत गये हारी ॥टेक।।
ब्यंद भाव भ्रिग तत जंत्रक,सकल सुख सुखकारी।
श्रवत सुनि रवि ससि सिव सिव,पलक पुरिष पल नारी ॥
अंतर गगन होत अंतर धुंनि,बिन सासनि है सोई।
घोरत सबद समंगल सब घटि,ब्यंदत ब्यंदै कोई ॥
पांणीं पवन अवनि नभ पावक,तिहि संगि सदा बसेरा ।
कहै कबीर मन मन करि बेध्या,बहुरि न कीया फेरा ॥१७२॥

नर देही बहुरि न पाईये,ताथैं हरषि हरषि गुंण गाईये ।।टेक।।
जे मन नहीं तजै बिकारा,तौ क्यूं तिरिये भौ पारा ॥
जब मन छाडै कुटिलाई,तब भाइ मिलै रांम राई॥
ज्यूं जांमण त्यूं मरण,पछितावा कछू न करणां ॥
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