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पृष्ठ:कबीर ग्रंथावली.djvu/२५७

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पदावली

  मेरी जिभ्या बिस्न नैन नारांइन,हिरदै जपौं गोबिंदा। .
  जंम दुवार जब लेख मांग्या,तब का कहिसि मुकंदा ॥टेक॥
तूं बाम्हण मैं कासी का जुलाहा,चीन्हि न मोर गियाना ।
तैं सब मांगें भूपति राजा,मोरे रांम धियाना ।।
पुरब जनम हम बांम्हन होते,वोछै करम तप हीनां ।
रांमदेव की सेवा चूका,परिक जुलाहा कीन्हां ।।
नौंमी नेम दसमीं करि संजम,एकादसी जागरणां ।
द्वादसी दांन पुनि की बेलां,सर्व पाप छयौ करणां ।।
भौ बूड़त कछु उपाइ करीजै,ज्यूं तिरि लंधै तीरा ।
रांम नांम लिखि भेरा बांधौ,कहै उपदेस कबीरा ॥ २५० ।।

  कहु पांडे सुचि कवन ठांव,
जिहि घरि भोजन बैठि खाऊ ॥ टेक ।।
माता जूठी पिता पुनि जूठा,जूठे फल चित लागे ।
जूठा आंवन जूठा जांना,चेतहु क्यूं न अभागे ।।
अंन जुठा पांनी पुनि जुठा,जूठे बैठि पकाया ।
जुठी कड़छी अन परोस्या,जूठे जूठा खाया ।।
चौका जूठा गोबर जूठा,जूठी का ढीकारा।
कहै कबीर तेई जन सुचे,जे हरि भजि तजहिं बिकारा ॥२५१।।


( २५० )ख० प्रति में इसके अागे यह पद है-
कहु पांडे कैसी सुचि कीजै,
सुचि कीजै तो जनम न लीजै ॥ टेक ॥
जा सुचि केरा करहु बिचारा,भिष्ट भए लीन्हा श्रौतारा ॥
जा कारणि तुम्ह धरती काटी,तामैं मूए जीव सौ सारी ॥
जा कारण तुम्ह लीन जनेऊ,थूक लगाइ कातैं सब कोऊ ॥
एक खाल घृत वेरी साखा,दूजी खाल मैले घृत राखा ॥
सो घृत कब देवतनि चढ़ायौ,सोई घृत सब दुनियां खायौ ॥
कहै कबीर सुचि देहु बताई,रांम नांम लीजौ रे भाई ॥ २५२ ॥