पृष्ठ:कबीर ग्रंथावली.djvu/२८३

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पदावली

अलह अलख निरंजन देव,किहिं बिधि करौं तुम्हारी सेघ ।।टेक।।
विश्न सोई जाको बिस्तार,सोई कृस्र जिनि कीयौ संसार ॥
गोव्यंद ते ब्रह्मं डहि गंहै,सोई रांम जे जुगि जुगि रहै ।।
अलह सोई जिनि उमति उपाई,दस दर खोलै सोई खुदाई ॥
लख चौरासी रब परवरै,सोई करीम जे एती करै ।।
गोरख सोई ग्यांन गमि गहै,महादेव सोई मन की लहै ।।
सिध साई जो साधै इती,नाथ सोई जा त्रिभुवन जती ।।
सिध साधू पैकंबर हूवा,जपै सु एक भेष है जूवा ॥ ।
अपरं पार का नांउ अनंत,कहै कबीर साई भगवंत ।। ३२७ ॥


तहां जौ रांम नांम ल्यौ लागै,तो जुरा मरण छुटै भ्रम भागै।।टेक।।
अगम निगम गढ रचि ले अवास,तहुवां जोति करै परकास ॥
चमकै बिजुरी तार अनंत,तहां प्रभू बैठे कवलाकंत ॥
अखंड मंडिल मंडित मंड,त्रि-स्नान करै त्रीखंड ॥ .
अगम अगोचर अभि-अंतरा,ताकौ पार न पावै धरणींधरा ।।
अरध उरध विचि लाइ ले अकास,तहुवां जोति करै परकास ॥
टायौ टरै न आबै जाइ,सहज सुनि मैं रह्यौ ममाइ ॥
अबरन बरन स्यांम नहीं पीत,हाहू जाइ न गावै गीत ।।
अनहद सबद उठै झणकार,तहां प्रभू बैठे समरथ सार ।।
कदली पुहुप दीप परकास,रिदा पंकज मैं लिया निवास ॥
द्वादस दल अभि-अंतरि म्यंत,तहाँ प्रभू पाइसि करिलै च्यत ।।
अमिलन मलिन घांम नहीं छांहां,दिवस न राति नहीं है तहां ॥
तहां न ऊगै सूर न चंद,आदि निरंजन करै अनंद ।।
ब्रह्मंडे सो प्यंडे जांनि,मांनसरोवर करि असनांन ॥
सोहं हंसा तांकौ जाप,ताहि न लिपै पुन्य न पाप ॥ ..
काया मांहै जांनै सोई,जो बोले सो आपै होई ।।
जोति मांहि जे मन थिर करै,कहै कबीर सो प्रांणीं तिरै ॥३२८॥