पृष्ठ:कबीर ग्रंथावली.djvu/२८५

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पदावली

खट दरसन कहियत हम भेखा,हमहीं अतीत रूप नहीं रेखा ।।
हमहीं आप कबीर कहावा,हम हीं अपनां आप लखावा ॥३३२।।

सो धन मेरे हरि का नाउं,गांठि न बांधौं बेचिन खांउ ॥टेक।।
नांउ मेरे खेती नांउ मेरे बारी,भगति करौं मैं मरनि तुम्हारी ।।
नांउ मेरे सेवा नांउ मेरे पूजा,तुम्ह विन और न जानौं दूजा ।।
नांउ मेरे बंधव नांव मेरे भाई,अंत की बिरियां नांव सहाई ॥
नांउ मेरे निरधन ज्यूं निधि पाई,कहै कबीर जैसैं रंक मिठाई ।।३३३।।

अब हरि हूं अपनौं करि लीनौं,
प्रेम भगति मेरौ मन भीनौं ॥ टेक ॥
जरै सरीर अंग नहीं मोरौं,प्रान जाइ तौ नेह न तोरौं ।
च्यतामणि क्यूं पाइए ठोली,मन दे रांम लियौ निरमोली ।।
ब्रह्मा खोजत जनम गवायौ,सोई रांम घट भीतरि पायौ ।
कहै कबीर छूटो सब आसा,मिल्यौ रांम उपज्यौ बिसवासा ॥३३४॥

लोग कहैं गोवरधनधांरी,ताकौ मोहि अचंभौ भारी ! टेक ।।
अष्ट कुली परबत जाके पग की रैंना,सातौं सायर अंजन नैनां ।
ऐ उपमां हरि कितो एक ओपै,अनेक मेर नख ऊपरि रोपै ॥
धरनि अकास अधर जिनि राखी,ताकी मुगधा कहैं न साखी ।।
सिव बिरंचि नारद जस गावै,कहै कबीर वाको पार न पावैं।।३३५।।

रांम निरंजन न्यारा रे,अंजन सकल पसारा रे ॥ टेक ।।
अंजन उतपति वो ऊंकार,अंजन मांड्या सब विस्तार ।
अंजन ब्रह्मा संकर इंद,अंजन गोपी संगि गोब्यंद ॥
अंजन बाणी अंजन बेद,अंजन कीया नांनां भेद ।।
अंजन बिद्या पाठ पुरांन,अंजन फोकट कथहि गियांन ।
अंजन पाती अंजन देव,अंजन की करै अंजन सेव ।।