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पदावली

सोमवार ससि अमृत झरै,चाखत बेगि तपै निसतरै ।
बांणी रोक्यां रहै दुवार,मन मतिवाला पीवनहार ॥
मंगलवार ल्यौ माहीत,पंच लोक की छाड़ौ रीत ।
घर छाड़ै जिनि बाहिर जाइ,नहीं तर खरौ रिसावै राइ ।।
बुधवार करै बुधि प्रकास,हिरदा कवल मैं हरि का बास ।
गुर गमि दोऊ एक समि करै,ऊरध पंकज थै सूधा धरै ।।
विसपति बिषिया देइ बहाइ,तोनि देव एकै संगि लाइ ।
तीनि नदी तहां त्रिकुटी माहि,कुसमल धे।वै अहनिसि न्हांहि ।।
सुक्र सुधा ले इहि व्रत चढ़ै,अह निसि आप आग सूं लडै ।
सुरपी पंच राखियं सबै,तौ दूजी द्रिष्टि न पैसै कबै ।।
यावर थिर करि घट में सोइ,जोति दीवटी मल्है जोइ ।
बाहरि भीतरि भया प्रकास,तहां भया सकल करम का नास ।।
जब लग घट मैं दुजी आंण,तब लग महन्ति न पावै जांण । .
रमिता रांम सूं लागै रंग,कहै कबीर ते निर्मल अंग ।। ३६२ ।।

रांम भजै सो जांनिये,जाकै अातुर नांहीं ।
सत संतोष लीयैं रहै, धीरज मन माहीं ।। टेक ।।
जन कौ कांम क्रोध व्यापै नहीं,त्रिष्णां न जरावै ।
प्रफुलित आनंद मैं,गाव्यंद गुंण गावै ॥
जन कौं पर निद्या भावै नहीं,अक असति न भाषै ।
काल कलपनां मेटि करि,चरनूं चित राखै ॥
जन सम द्रिष्टी सीतल सदा,दुबिधा नहीं आनैं ।
कहै कबीर ता दास सूं,मेरा मन मांनैं ॥ ३६३ ।।

माधौ सो न मिलै जासौं मिलि रहिये,
ता कारनि बर बहु दुख सहिये ॥ टेक ।।
छत्रधार देखत ढहि जाइ,अधिक गरब थैं खाक मिलाइ।।
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