पृष्ठ:कबीर ग्रंथावली.djvu/२९७

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पदावली

सबहि नल दुल मलफ लकीर,जल बुदबुदा ऐसो इहि सरीर ॥
जिभ्या रांम नांम अभ्यास,कहै कबीर तजि गरभ बास ॥३७४॥

  रसनां राम गुन रमि रस पीजै,
गुन अतीत निरमोलिक लीजै ॥ टेक॥
निरगुन ब्रह्म कथौ रे भाई,जा सुमिरत सुधि बुधि मति पाई ॥
बिष तजि रांम न जपसि अभागे,का बूड़े लालच के लागे ।।
ते सब तिरे राम रस स्वादी,कहै कबीर बूड़े बकबादी ॥३७५॥

  निबरक सुतल्यौ कोरा,रांम मोहि मारि कलि बिष बोरा।।टेक॥
उन देस जाइबो रे बाबू,देखिबो रे लोग किन किन खैबू लो ।
'उड़ि कागा रे उन देस जाइबा,जासूं मेरा मन चित लागा लो।
हाट ढूंढ़ि ले,पटनपुर दुंढ़ि ले,नहीं गांव कै गोरा लो ॥
जल बिन हंस निसह विन रबू,
कबीरा कौ स्वांमीं पाइ परिकैं मनैं बू लो ॥३७६॥

[ राग बसंत ]

  सो जोगी जाकै सहज भाइ,अकल प्रीति की भीख खाइ ।।टेक॥
सबद अनाहद सींगी नाद,काम क्रोध बिषिया न बाद ।।
मन मुद्रा जाकै गुर कौ ग्यांन,त्रिकुट कोट मैं धरत ध्यांन ॥
मनहीं करन कौ करै सनांन,गुर कौ सबद ले ले धरै धियांन ॥
काया कासी खोजै बास,तहां जोति सरूप भयौ परकास ॥ •
ग्यांन मेषली सहज भाइ,बंक नालि कौ रस खाइ ॥
जोग मूल कौ देइ बंद,कहि कबीर थिर होइ कंद ॥ ३७७ ॥

  मेरी हार हिरांनौं मैं लजाऊं,सास दुरासनि पीव डराऊँ।।टेक॥
हार गुह्यौ मेरौ रांम ताग,विचि विचि मान्यक एक लाग ।।
रतन प्रवालै परम जोति,ता अंतरि अंतरि लागे मोति ।।