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रमैंणी

तुमिरत हूँ अपनै उनमानां, क्य चित जोग रांम मैं जांनां ।।
सुखां साध का जांनियै असाधा, क्य चित जोग रांम मैं लाधा।।
कुबिज होइ अंमृत फल बंछया, पहुँचा तब मनि पूगी इंछया ।
नेयर थैं दूरि दूरि थैं नियरा, रांम चरित न जांनियैं जियरा ॥
जीत थैं अगिन फुनि होई, रबि थैं ससि ससि थैं रबि सोई ।।
सीत थैं अगनि परजरई, थल थैं निधि निधि थैं थल करई ।।
बज्र थैं तिण खिण भीतरि होई, तिण थैं कुलिस करै फुनि सोई।।
गेरवर छार छार गिरि होई, अविगति गति जानैं नहीं कोई ।।
जिहि दुरमति डौल्यौ संसारा, परे असूझि वार नहीं पारा ।।
बिख अमृत एकै करि लीन्हां, जिनि चीन्हां सुख तिहकूं हरि दीन्हां ।
सुख दुख जिनि चोन्हां नहीं जानां, ग्रासे काल सोग रुति मांनां।
होइ पतंग दीपक मैं परई, झूठै स्वादि लागि जीव जरई ।।
कर गहि दीपक परहि जु कूपा. यहु अचिरज हम देखि अनूपा ।।
यांनहीन ओछी मति बाधा, मुखां साध करतूति असाधा ।।
इरसन समि कछू साध न होई, गुर समांन पूजिये सिध सोई ।।
भेष कहा जे बुधि बिसुधा, बिन परचै जग बूड़नि बूड़ा ।।
जदपि रबि कहिये सुर आही, झूठै रबि लीन्हां सुर चाही ।।
कबहूँ हुतासन होइ जरावै, कबहूँ अखंड धार बरिषावै ।।
कबहू सीत काल करि राखा, तिहू प्रकार बहुत दुख देखा।
ताकूं सेवि मूढ़ सुख पावै, दौरै लाभ कूं मूल गवावै ।।
अछित राज दिने दिन होई, दिवस सिराइ जनम गये खोई ।।
मृत काल किनहूं नहीं देखा, माया मोह धन अगम अलेखा ।।
फूठै झूठ रह्यौ उरझाई, साचा अलख जग लख्या न जाई ।।
साचै नियरै झूठै दूरी, विष कूं कहै सजीवनि मूरी ।। .
तथ्यौ न जाइ नियरै अरु दूरी, सकल अतीत रह्या घट पूरी ।।
नहीं देखौं तहां रांम समांनां, तुम्ह बिन ठौर और नहीं आंनां ।।