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रमैंणी

कृतम सुनित्य और जनेऊ,हिंदू तुरक न जांनै भेऊ ।।
मन मुसले की जुगति न जांनै,मति भूलै द्वै दीन बखांनैंं ।।
पांणीं पवन संजोग करि,कीया है उतपाति ।।
सुंनि मैं सबद समाइगा,तब कासनि कहिये जाति ।।
तुरकी धरम बहुत हम खेोजा,बहु बजगार करै ए बेधा ।।
गाफिल गरब करें अधिकाई,स्वारथ अरथि बधैं ए गाई ।।
जाको दूध धाइ करि पोजै,ता माता की बध क्यूं कीजै ।।
लहुरै थकै दुहि पीया खीरा,ताका अहमक भखै सरीरो ॥
बंअकली अकलि न जांनहीं,भूले फिर ए लाइ ।
दिल दरिया दोदार बिन,भिस्त कहां थें होइ ।।
पंडिन भूले पढ़ि गुन्य बेदा,आप न पांवैं नांनां भेदा ।।
संभया तरपन अरु षट करमां,लागि रहे इनकै प्राशरमा ।।
गायत्री जुग चारि पढ़ाई,पूछौ जाइ मुकति किनि पाई ॥ .
सब मैं राम रहै ल्यौ सींचा,इन थैं और कहा को नीचा ।।
प्रति गुन गरव करै अधिकाई,अधिकै गरबि न होइ भलाई ।
जाको ठाकुर गरब प्रहारी,सो क्यूं सकई गरब सहारी ॥
कुल अभिमान बिचार तजि.खाजी पद निरबांन ।
अंकुर बीज नसाइगा,तब मिलै बिदेही थांन ।
खत्री करै खत्रिया धरमा,तिनकू होय सवाया करमो ॥
जीवहि मारि जीव प्रतिपार,देखत जनम आपनौं हारें ॥
पंच सुभाव जु मेटै काया,सब तजि करम भजे राम राया ।।
खत्री गो जु कुटंब सू सूझ,पंचू मेटि एक • बूझै ।।
जा प्रावध गुर ग्यान लखावा,गहि कर वास्त धूप धरि धावा ।।
हेला करै निसानै घाऊ,झूझ परै तहां मनमथ राऊ ।।
मनमथ मरै न जीवई,जीवण मरण न होइ
सुनि सनेही राम, बिन,गये अपनपी खोइ ।।