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रमैणी
भाव भगति की सेवा मांनैं,सतगुर प्रगट कहै नहीं छांनैं ।।
अनभै उपजि न मन ठहराई,परकीरति मिलि मन न समाई ॥
जब लग भाव भगति नहीं करिहौं,तब लग भवसागर क्यूं तिरिहौं॥
भाव भगति बिसवास बिन,कटै न संसै सूल ।
कहै कबीर हरि भगति बिन,मूकति नहीं रे मूल ॥
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