पृष्ठ:कबीर ग्रंथावली.djvu/३९१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३०७
परिशिष्ट

मोकौ कहा पढ़ावसि आल जाल।मेरी पटिया लिखि देहु श्रीगोपाल।।
नहीं छोड़ौ रे बाबा रांम नांम । मेरो और पढ़न स्यो नही काम ।।
संडै मरकै कह्यो नाइ ! प्रहलाद बुलाये बेगि धाइ ।।
तू रांम कहन की छोडु, बानि।तुझ तुरंत छडाऊँ मेरो कहो मानि।।
मोकौ कहा सतावहु बार बार । प्रभु भज थल गिरि किये पहार ।।
इक रांम न छोड़ौ गुरुहि गारि।मोकौ घालि जारि भाखै मारि डारि।।
काटि खड़ग कोप्यो रिसाइ । तुझ राखनहारो माहि बनाइ ।।
प्रभु यंभ ते निकस के विस्तार । हरनाखम छंद्यो नख बिदार ।।
ओइ परम पुरुप देवाधि देव । भगत हंत नरसिंघ भेव !
कहि कबीर का लखै न पार ।प्रहलाद उवार अनिक बार ।।१४२।।

फील रबावी बलदु पखावज कोआ ताल बजावै ।
पहरि चालना गदहा नाचै भैसा भगति करावै ।।
राजा राम क करिया बरपं कार्य।किन बूझन हार खाय।।
बैठि सिंह घर पान लगावहि घीस गल्योरे लावै ।
घर घर मुसरी मंगल गावांह कछुवा संख बजावै ।।
बंस को पूत वाहन चलिया सुइने मंडप छाये ।
रूप कन्निया सुंदर वेधो ससै सिंह गुन गाये ।।
कहत कबीर सुनहु र पंडित कीटी परवत खाया :
कछवा कहै अंगार भिलोरौ लूकी सबद सुनाया ।।१४३।।

फुरमान तेरा सिरै ऊपर फिरि न करत बिचार ।
तुही दरिया तुही करिया तुझै ते निस्तार ।।
बंदे बंदगी इकतीयार । साहिब रोष धरौ कि पियार ।।
नांम तेरा आधार मेरा जिउ फूल जइहै नारि ।
कहि कबीर गुलाम घर का जीआइ भावै मारि ।।१४४॥

बंधचि बंधनु पाइया । मुकतै गुरि अनलु बुझाइया।
जब नख सिख इहु मनु चीना ।तब अंतर मजनू कीना।।