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पृष्ठ:कबीर ग्रंथावली.djvu/४७

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से था। हिन्दु मुसलमान सभी संत फकीरों का इन्होंने समागम किया था; अतएव हिंदुभावों के साथ इनमें मुसलमानी भाव भी पाए जाते हैं। यद्यपि इनकी रचनाओं में भारतीय ब्रह्मवाद का पूरा पूरा ढाँचा. पाया जाता है तथापि उसकी प्राय: वे ही बातें इन्होंने अधिक विस्तृत रूप से वर्णन के लिये उठाई हैं जो मुसलमानी एकेश्वरवाद के अधिक मेल में थीं। इनका ध्येय सर्वदा हिंदू मुस्लिम ऐक्य रहा है, यह : भी इसका एक कारण है। ___ स्थूल दृष्टि से ते मूर्तिद्रोही एकेश्वरवाद और मूर्तिपूजक बहु- देववाद में बहुत बड़ा अंतर है; परंतु यदि सूक्ष्म दृष्टि से विचार किया जाय तो उनमें उतना अंतर नहीं देख पड़ेगा जितना एकेश्वरवाद और ब्रह्मवाद में है; वरन सारतः वे दोनों एक ही हैं, क्योंकि बहुत से देवी देवताओं को अलग अलग मानना और सबके गुरु गोवर्धन- दास एक ईश्वर को मानना एक ही बात है। परंतु ब्रह्मवाद का मूलाधार ही भिन्न है। उसमें लेश मात्र भी भौतिकवाद नहीं है। एकेश्वरवाद भौतिकवाद है, वह जीवात्मा, परमात्मा और जड़ जगत् तीनों की भिन्न सत्ता मानता है, जब कि ब्रह्मवाद शुद्ध प्रात्मतत्त्व अर्थात् चैतन्य के अतिरिक्त और किसी का अस्तित्व नहीं मानता। उसके अनुसार प्रात्मा भी परमात्मा ही है और नड़ जगत् भी ब्रह्म है। कबीर में भौतिक या बाह्यार्थवाद कहीं मिलता ही नहीं और प्रात्मवाद की उन्होंने स्थान स्थान पर अच्छी झलक दिखाई है। ब्रह्म ही जगत् में एक मात्र सत्ता है, उसके अतिरिक्त संसार में और कुछ नहीं है। जो कुछ है, ब्रह्म ही है। ब्रह्म ही से सबकी उत्पत्ति होती है और फिर उसी में सब लीन हो जाते हैं। कबोर के शब्दों में- पाणी ही ते हिम भया. हिम है गया बिलाइ । जो कुछ था सोई भया, अब कुछ कहा न जाह॥