पृष्ठ:कबीर ग्रंथावली.djvu/८३

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की पहुँच के बाहर हैं। चंदकृत पृथ्वीराजरासो नामक जो प्रक्षिप्त महाकाव्य प्रसिद्ध है, उसी में उनके महत्त्व का बहुत कुछ दर्शन हो जाता है। अतएव जब तक उनकी रचना के विषय में कोई निश्चयात्मक निर्णय नहीं हो जाता, तब तक उनको किसी के साथ तुलना के लिये खड़ा करना उन पर अन्याय करना है। केशव को काव्यशास्त्र का प्राचार्य भले ही मान लें, पर उनको नैसर्गिक कवियों में गिनना कवित्व का तिरस्कार करना है। बिहारी की कोटि के कवियों की कविता को सच्ची स्वाभाविक कविता में गिनने में भी संकोच हो सकता है। मूड़ मुँडाकर श्रृंगार के पीछे पड़नेवालं सब कवि इसी श्रेणी में हैं। पर भूषण, जायसी और कबोर में कौन बड़ा है, इसका निर्णय नहीं हो सकता। तीनों में सच्चे कवि की प्राकुलता विद्यमान है और अपने क्षेत्र में तीनों की पूरी पहुँच है, तीनों एक श्रेणी के हैं, फिर भी यदि आध्यात्मिकता को भौतिकता से श्रेष्ठ ठहराकर कोई कबीर को श्रेष्ठ ठहरावे तो रुचिस्वातंत्र्य के कारणं उसे यह अधिकार है। प्रभाव से यदि श्रेष्ठता माने तो तुलसी के बाद कबार ही का नाम आता है; क्योंकि तुलसी को छोड़कर हिंदी- भाषी जनता पर कबीर के समान या उनसे अधिक प्रभाव किसी कवि का नहीं पड़ा।