पृष्ठ:कबीर वचनावली.djvu/१४

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जोलाहा, शेख तकी के उत्तराधिकारी और चेले थे। वह अपने समय के महापुरुष और ईश्वर-वादियों के नेता थे। उन्होंने सूफियों के विसाल (ईश्वरमिलन) नामक सिद्धांत की शिक्षा दी और फिराक (वियोग) के संबंध में चुप रहे। यह भी कहा जाता है कि वे पहले मनुष्य हैं जिन्होंने परमेश्वर और उसकी सत्ता के विषय में हिंदी में लिखा। वे बहुत सी हिंदी कविताओं के रचयिता हैं। धार्मिक सहनशीलता के कारण हिदू और मुसल्मान दोनों ही ने उन्हें अपना नेता माना । हिंदुओं ने उन्हें भगत कवीर और मुसलमानों ने पीर कबीर कहा।" इसके धागे चलकर उनका दूसरा अध्याय प्रारंभ होना है। उसमें उन्होंने इस ऊपर लिखे विचारं को हो पुष्टि को है। पहले वे कहते हैं- "संस्कृत के नामी विद्वान् विलसन साहब, जिनकी ग्यान के लिये प्रत्येक भारतवर्षीय धार्मिक विचारों का जिज्ञासु अँगरेज धन्यवाद रूपी ऋण से दवा है, लिखते हैं कि यह वात विचारविरुद्ध है कि कबीर. एक मुसल्मान थे, यद्यपि यह असंभव नहीं है। मैलकम साहब की इस अनुमति का कि वे सूफियों में से थे, विलसन साहब अधिक श्रादर नहीं फरते । बाद के लेखकगण एक ऐसे विद्वान पुरुप की सम्मनि मान लेने में ही मंतुष्ट रहे हैं और इनकी निष्पत्ति को उन्होंने निश्चित की हुई सत्य बात की भाँति स्वीकार कर लया है।" क... क०, पृष्ठ २२. इसके अननर नामा जी के प्रसिद्ध छप्पय इत्यादि का अनुवाद देकर, जिनमें यह कहा गया है कि "कर माहव ने वर्गाश्रम धर्म और पद दर्शन की कानि नहीं मानी" उन्होंने यह बतलाया है कि कबीर साहब ने किस प्रकार झाँसी